भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म और आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है. यहां अनेक मंदिर स्थित हैं, जिनमें भगवान की पूजा की जाती है. हर मंदिर की अपनी विशेष कहानी, मान्यता और पहचान होती है. 

लेकिन आज हम आपको भारत के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भगवान की कोई भी मूर्ति नहीं है, फिर भी लाखों लोग हर दिन दर्शन करने के लिए आते हैं. 

जी हां, हम बात कर रहे हैं वो है ये मंदिर पूरे भारत में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां न तो कोई पुजारी है और न ही कोई मूर्ति. यह मंदिर है दिल्ली का लोटस टेम्पल. 

इसे कमल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर बहाई धर्म का उपासना स्थल है और अपनी शानदार वास्तुकला के कारण भारत के सबसे प्रमुख और विशेष मंदिरों में से एक है.

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह किसी एक धर्म से जुड़ा नहीं है, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला है. यहां पर किसी भी तरह की मूर्ति या धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते हैं. 

इसके बजाय, यहां विभिन्न धर्मों के पवित्र ग्रंथों का पाठ किया जाता है, जिससे यह सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान स्थान बन गया है.

लोटस मंदिर की वास्तुकला इसकी प्रमुख आकर्षण है. यह संरचना 27 स्वतंत्र संगमरमर की पंखुड़ियों से निर्मित है, जो कमल के फूल की तरह दिखाई देती हैं. 

इन पंखुड़ियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, जो नौ हिस्सों में बांटी गई हैं. मंदिर के मुख्य द्वार की ऊंचाई 40 मीटर से अधिक है और यहां नौ प्रवेश द्वार हैं.

मंदिर के अंदर एक विशाल प्रार्थना हॉल है जहां एक साथ 2500 लोग बैठ सकते हैं. यह न केवल अपनी वास्तुकला के लिए बल्कि अपनी शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण के लिए भी प्रसिद्ध है. 

दिल्ली के नेहरू प्लेस क्षेत्र में स्थित लोटस टेम्पल 1986 में आम जनता के लिए खोला गया था. इसका निर्माण एक प्रसिद्ध ईरानी वास्तुकार फरिबर्ज़ सहबा ने किया था.