एक ऐसा अनोखा हवेलियों वाला गांव, जहां चिड़िया-गिलहरी जैसे हैं लोगों के सरनेम, जानें वजह
बागपत का बामनौली गांव एक ऐसा अनोखा गांव हैं, जहां लोगों की पहचान हवेलियों से होती है. बाहर से गांव में आने वाले लोग हवेलियों के नाम से ही व्यक्ति के घर का पता पूछते हैं.
इस गांव में 11 ऐतिहासिक मंदिर भी हैं. यहां की एक और अनोखी बात यह है कि लोग अपने नाम के आगे पशु-पक्षियों के नाम उपनाम के तौर पर पुराने समय से लगाते आ रहे हैं.
जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित करीब 14,000 की आबादी वाले बामनौली गांव में 250 साल पहले बड़ी-बड़ी हवेलियां बनाने का काम शुरू हुआ और गांव में 50 से ज्यादा हवेलियां बनवाई गईं.
इस वजह से इस गांव को हवेलियों वाला गांव कहा जाता है. गांव की 24 से अधिक हवेलियां पूर्वजों की गाथाओं को दर्शाती हैं. कुछ लोग गांव से हवेलियों को बेचकर शहरों में रहने चले गए हैं.
हालांकि, अभी भी तकरीबन 30 परिवार आज भी पूर्वजों की हवेलियों में रहकर उनके इतिहास को संजोए हुए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने हवेलियों का निर्माण करने के लिए ईंट बनाने के लिए गांव में भट्ठियां लगाई गई थीं.
हवेलियों में आज भी उन भट्ठियों से बनी ईंट लगी हैं, जो गांव और हवेलियों के 250 साल पुराने इतिहास को दिखाती हैं.
गांव के व्यक्ति विरेश का पूरा नाम विरेश भेड़िया है. विरेश ने बताया कि लोगों के उपनाम पशुओं व जानवरों के नाम पर रखने का रिवाज काफी पुरानी है.
उनके अनुसार गांव में कई के नाम के पीछे तोता, चिड़िया, गिलहरी, बकरी, बंदर आदि लगे हैं. गांव के सोमपाल को गीदड़ के नाम से पुकारा जाता है.
इतना ही नहीं, कोई चिट्ठी आती है तो यही उपनाम लिखे जाते हैं. डाक कर्मी बिजेंद्र सिंह ने बताया कि उपनाम से ही गांव के लोग जाने जाते हैं. उनकी चिट्ठियों पर उनके नाम के साथ उपनाम लिखे जाते हैं.