इस जगह पर पिंडदान करने से आत्मा को तुरंत मिलती है मुक्ति, ये है मान्यता
पितृपक्ष में गया जाकर अपने पूर्वजों के नाम से पिंडदान करने का गरुड़ पुराण में विशेष महत्व बताया गया है
पिंडदान के लिए भारतवर्ष क्या दुनिया भर से हिंदू प्रसिद्ध तीर्थ स्थान गया पहुंचते हैं, लेकिन मान्यताओं के अनुसार एक तीर्थ ऐसा भी है जहां पर किया पिंडदान गया से भी आठ गुना फलदायी है
आइए आपको बताते हैं कहां है यह स्थान और क्या है इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
चारों धामों में प्रमुख उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल के बारे में मान्यता है कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है
स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुना अधिक फलदायी तीर्थ कहा गया है
सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब तीन देवों में ब्रह्माजी, अपने द्वारा उत्तपत्तित कन्या के रूप पर मोहित हो गए थे,
उस समय भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मजी के तीन सिरों में से एक को त्रिशूल से काट दिया था
इस प्रकार शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था और वह कटा हुआ सिर शिवजी के हाथ पर चिपक गया था
ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पूरी पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए परन्तु कहीं भी ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिली
भ्रमण करते-करते शिवजी बदरीनाथ पहुंचे वहां पर एक शिला पर शिवजी के हाथ से ब्रह्माजी का सिर जमीन पर गिर गया और शिवजी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली
तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रूप में प्रसिद्ध हुआ. ब्रह्मकपाल शिला के नीचे ही ब्रह्मकुण्ड है जहां पर ब्रह्माजी ने तपस्या की थी
शिवजी ने ब्रह्महत्या से मुक्त होने पर इस स्थान को वरदान दिया कि यहां पर जो भी व्यक्ति श्राद्ध करेगा उसे प्रेतयोनी में नहीं जाना पड़ेगा एवं उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाएगी