दिल्ली, अपने ऐतिहासिक स्थलों और धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है. इनमें से एक प्रमुख और खौफनाक स्थल है खूनी दरवाजा. 

यह दरवाजा, जिसे अंग्रेज़ों के समय में 'कैबुली दरवाजा' भी कहा जाता था, दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग पर स्थित है. 

शाम होने के बाद यहां लोगों को डर लगने लगता है. इस दरवाजे से जुड़े इतिहास में कई डरावने किस्से दर्ज हैं. 

खूनी दरवाजा की हकीकत और इतिहास जानकर आप हैरान हो जाएंगे, क्योंकि ये दरवाजा अपने आप में कई राज और कहानियों को समेटे हुए है. 

इसे शेरशाह सूरी ने बनवाया था. ये दरवाजा फिरोज़ाबाद की शान में निर्माण किया गया था. इसे काबुली बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है. 

इसका नाम काबुली दरवाजा इसलिए रखा गया था, क्योंकि अफगानिस्तान से आने वाले लोग इस दरवाजे से होकर गुजरते थे. 

ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसी दरवाजे पर अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर कलम करके लटका दिया था.

कवि अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के दो बेटों को मुगल बादशाह जहांगीर ने मार डाला था.

इस खूनी दरवाजे के पास खूनी हिंसा की एक और घटना 1857 के दौरान हुई जब ब्रिटिश नेता विलियम हडसन ने बहादुरशाह जफर के दो बेटों और पोते की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

इस दरवाजे पर 1947 में विभाजन के दौरान ही इसी दरवाजे पर सैकड़ों शरणार्थियों की हत्या कर दी गई थी.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां  रातों को चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं. यहां मारे गए लोगों के भूत आज भी इस इलाके में रहते हैं.

इस दरवाजे के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि मॉनसून के समय में इस दरवाजे की छत से खून की बूंदे टपकती हैं. हालांकि, दावे को साबित करने के लिए वर्तमान में कोई सबूत नहीं है.