आपको मालूम है किस पौधे से बनती है हींग और क्यों कहलाती है 'शैतान का गोबर'? जानें
भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक शायद ही कोई ऐसा घर या रसोई हो, जहां हींग इस्तेमाल न की जाती हो.
हींग का इस्तेमाल तड़के से लेकर पूरी-पराठे जैसी चीजों में किया जाता है. एक चुटकी हींग खाने का ज़ायका दोगुना कर देती है.
क्या आपने कभी सोचा है कि हींग बनती कैसे है, ये किस पौधे से तैयार की जाती है? आइये आपको हींग की पूरी कहानी बताते हैं.
हींग फारसी भाषा का शब्द है. अंग्रेजी में इसको Asafoetida कहते हैं. हींग फेरुला एसाफोइटीडा नाम के पौधे के रस से तैयार किया जाता है.
यह पौधा जंगली सौंफ की प्रजाति का है. इसकी लंबाई एक से डेढ़ मीटर के आसपास होती है.
फेरुला एसाफोइटीडा की जड़ से तरल चिपचिपा जैसा पदार्थ निकलता है. इसी चिपचिपे पदार्थ को इकट्ठा करने के बाद उसे प्रोसेस किया जाता है. फिर हींग तैयार होती है.
कच्चे हींग की खुशबू बहुत तीखी होती है. उसे डायरेक्ट इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, इसीलिए इसको प्रोसेस करना पड़ता है.
इस प्रक्रिया में इसमें चावल का आटा, गोंद, स्टार्च, और कई चीजें मिलाई जाती हैं. फिर हाथ अथवा मशीन के जरिये हींग को गोल या पाउडर का आकार दिया जाता है.
indianspices.com के मुताबिक हींग मुख्य तौर पर दो तरह की होती है. पहला- काबुली सफेद और दूसरा हींग लाज या लाल. सफेद हींग बहुत आसानी से पानी में घुल जाता है, जबकि लाल हींग तेल में घुलनशील होती है.
हींग भले ही खाने का स्वाद और ज़ायका बढ़ा देती हो लेकिन कुछ लोगों को यह कतई पसंद नहीं आती. यहां तक कि हींग की गंध से उन्हें एलर्जी होती है. कच्चे हींग की गंध बहुत तीखी होती है.
कुछ लोग इसे सड़े अंडे या सड़ी गोधी के गंध जैसा करार देते हैं, इसीलिए इसे ‘डेविल्स डंग’ (Devils Dung) भी कहते हैं, जिसका मतलब है शैतान का गोबर.