क्या आप जानते हैं तिरंगे को राष्ट्रीय झंडे के तौर पर कैसे अपनाया गया था? यहां जानें
22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया था.
यह एक ऐतिहासिक दिन था क्योंकि तिरंगे को अपनाना औपनिवेशिक शासन से मुक्त एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित होने की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम था.
संविधान सभा की बैठक नई दिल्ली के संविधान हॉल में सुबह 10 बजे हुई थी. इस बैठक की अध्यक्षता डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने की थी.
संविधान सभा की बैठक 9 दिसंबर, 1946 से हो रही थी और तब तक कई विषयों पर चर्चा हो चुकी थी.
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ये घोषणा की कि एजेंडे में पहला प्रस्ताव पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा ध्वज के बारे में है.
इसके बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए उठे और ये तय किया गया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज में गहरे केसरिया (केसरी), सफेद और गहरे हरे रंग का समान अनुपात होगा.
सफेद पट्टी के केंद्र में, चरखे का प्रतिनिधित्व करने के लिए नेवी ब्लू रंग में एक पहिया होगा.
इस पहिये का व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के लगभग होगा. झंडे की चौड़ाई और लंबाई का अनुपात सामान्यतः 2:3 होगा. इसके बाद इस प्रस्ताव को अपना लिया गया.
नेहरू ने कहा था कि वर्तमान क्षण में चमक और गर्मजोशी महसूस हो रही है.
उन्होंने कहा था कि उन्हें और सदन में मौजूद अन्य लोगों को याद है कि उन्होंने इस झंडे को न केवल गर्व और उत्साह के साथ देखा था, बल्कि ये हमारी रगों का एक उबाल भी था.
जब भी हम थोड़ा डाउन महसूस करते थे तो इस ध्वज को देखकर आगे बढ़ने का साहस मिलता था. इसके अलावा उन्होंने कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी.