भारत में माचिस के निर्माण की शुरुआत साल 1895 से हुई थी. इसकी पहली फैक्ट्री अहमदाबाद में और फिर कलकत्ता (अब कोलकाता) में खुली थी.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि माचिस की तीली का आविष्कार कब व कैसे हुआ था? आइए आपको बताते हैं
दुनिया में सबसे पहले माचिस का आविष्कार ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन वॉकर द्वारा 31 दिसंबर 1827 को किया था.
इन्होने माचिस की एक ऐसी तिल्ली का आविष्कार किया था, जो की किसी भी खुदरी जगह पर घर्षण करने से जल जाती थी.
जॉन वॉकर का यह अविष्कार बड़ा घातक साबित हुआ और कई बार खतरनाक विस्फोट भी हुए.
साल 1855 में दूसरे केमिकल्स के मिश्रण से एक सुरक्षित माचिस का निर्माण किया गया, जिसका उपयोग आज तक किया जा रहा है.
माचिस की तीली को सल्फर, पोटेशियम क्लोरेट, फिलर के इस्तेमाल से बनाया गया. सारे पदार्थ को एक साथ बांधने के लिए ग्लू का यूज किया गया
माचिस की डिब्बी के साइड में जो पट्टी होती है उसमें फॅास्फोरस और कांच का मिश्रन होता है. जब तीली को पट्टी पर घिसा जाता है तब उसमें से आग निकलती है
इसके अलावा माचिस की डिब्बी दो तरह के बोर्ड से बनते हैं. बाहरी बॉक्स बोर्ड और भीतरी बॉक्स बोर्ड. वहीं, माचिस की तीली कई तरह की लकड़ियों से बनाई जाती हैं.
सबसे अच्छी माचिस की तीली अफ्रीकन ब्लैकवुड से बनती है. पाप्लर नाम के पेड़ की लकड़ी भी माचिस की तीली बनाने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है.