क्या आप जानते हैं कब और कहां पर शुरू हुई थी टिकुली कला? यहां जान लीजिए
कलाकार की न कोई जाति होती है और न ही उसका कोई धर्म, वह तो बस अपनी कला में डूबा होता है. कुछ ऐसी ही कहानी पटना की रहने वाली शबीना इमाम की है.
शबीना टिकुली आर्टिस्ट हैं. वह इस कला के जरिए हिंदू-देवी देवताओं की अद्भुत तस्वीरें बनाती हैं. शुरुआत में ऐसा करने पर मुस्लिम होने के नाते उनका विरोध भी हुआ, लेकिन शबीना ने इसकी परवाह नहीं की.
आज शबीना की गिनती बिहार के नामचीन टिकुली कलाकार के रूप में होती है. वह अब तक 200 से ज्यादा महिलाओं को इस कला में निपुण कर चुकी हैं.
शबीना इमाम बताती हैं कि हमारे धर्म में पेंटिंग करने पर मनाही है, लेकिन मेरी रुचि शुरू से ही फाइन आर्ट और पेंटिंग में थी.
शुरुआत फाइन आर्ट से हुई. लेकिन जब चित्रकार अशोक कुमार विश्वास के पास गई तो वहां टिकुली पेंटिंग को देखा.
उसी समय से इसमें दिलचस्पी बढ़ने लगी. फिर अशोक कुमार सर से जुड़कर सीखने लगी. वह बताती हैं कि टिकुली पेंटिंग हिंदू पौराणिक कथाओं पर बनती है.
शबीना बताती हैं कि टिकुली पेंटिंग हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित होती है. इनकी कहानियों को पेंटिंग का रूप देने के लिए मेरे लिए जरूरी था कि इन कथाओं के बारे में जान सकूं.
उनके गुरु अशोक कुमार विश्वास बताते थे कि बिना पढ़ाई किए किसी धर्म के बारे में बताना सही नहीं होता है. इसलिए विभिन्न देवी-देवताओं के बारे में पहले पढ़ा.
दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले सीरियल रामायण और महाभारत से काफी कुछ सीखा. साथ ही पड़ोस के हिंदू परिवारों से इसे समझा.
शबीना बताती हैं कि टिकुली कला बिहार की बेहतरीन शिल्प-कलाओं में से एक है. टिकुली का अर्थ होता बिन्दी. ये वही बिंदी है जिसे महिलाएं अपने माथे पर लगाती हैं.
कहा जाता है कि बिहार में टिकुली कला करीब 800 वर्ष पूर्व पटना में शुरू हुई थी. मध्यकाल में मुगलों ने इस कला में खास दिलचस्पी दिखाई और उसे राजकीय संरक्षण दिया.
जबकि इसकी शुरुआत मौर्य काल के दौरान हुई थी. तब सोने और शीशे की मदद से बिंदी बनाई जाती थी. धीरे-धीरे समय बदला और इसका रूप बदलता चला गया.
प्रख्यात चित्रकार उपेंद्र महारथी ने स्थानीय कलाकारों की मदद से शीशे से उठाकर इसे लड़की पर शिफ्ट कर दिया और आज कपड़ों पर भी यह पेंटिंग बनाई जा रही है.