क्या आपको मालूम है सबसे पहले कहां पर बनी थी ताश की गड्डी? यहां पर जानें
कई रिपोर्ट में बताया जाता है कि ताश के पत्तों की शुरुआत चीन से हुई, जहां 9 वीं या 10 वीं शताब्दी में इसको विकसित किया गया.
उस दौरान ताश के पत्तों पर नंबर बने हुए होते थे. हालांकि ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के अनुसार चीन में चिह्रों के साथ खेले जाने वाले किसी खेल का कोई सबूत नहीं मिलता है.
ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के अनुसार इस खेल को पहली बार यूरोप के इजिप्ट या स्पेन में 1370 के दौरान खेला गया. उस समय ताश के पत्तों पर हाथ से लिखा जाता था.
धीरे धीरे व्यापार के जरिए यह बाकी देशों में पहुंचा. 15 वीं शताब्दी में यह अमीरों के टाइमपास का साधन हुआ करता था.
15 वीं शताब्दी में जर्मनी में पत्ते लकड़ी पर बनने शुरू हुए जिससे इसकी छपाई की लागत कम हुई.
आधुनिक समय में 52 पत्तों वाले ताश के डिजाइन को पूरी दुनिया में स्वीकार्य किया जाता है, इसे 4 सूट तथा 13 रैंक में बांटा गया है, ताकि प्रत्येक कार्ड सूट और रैंक को सही रूप से पहचाना जा सके.
मानक डेक में आम तौर पर दो या अधिक अतिरिक्त कार्ड होते हैं, जिन्हें जोकर कहा जाता है.
भारत में ताश के पत्तों की शुरुआत मुगल काल के दौरान मानी जाती है. बताया जाता है कि यह बाबर के समय भारत में आया.
उस दौरान इसे गंजीफा के नाम से जाना जाता था और इसके पत्ते आमतौर पर हाथ से रंगे जाते थे. धीरे-धीरे यह भारत में पॉपुलर हुआ और आज हर जगह खेला जाता है.