क्या आप जानते हैं पटना का गोलघर किसने और कब बनवाया था? यहां जानें इतिहास

आपने भारत के कई शहरों में गोलघर की इमारतें देखी होंगी लेकिन मशहूर बिहार की राजधानी, पटना का गोलघर है. 

आज ये पटना शहर के सबसे आकर्षक टूरिस्ट आकर्षणों में गिना जाता है. कहा जाता है कि अगर पटना आकर गोलघर नहीं देखा तो पटना ही नहीं देखा.

लेकिन इसके बारे में कम ही लोगों को पता है कि इसका मालिक कौन है और इसे किसने और कब बनवाया था? चलिए आपको बताते हैं इसके इतिहास के बारे में. 

आमतौर पर अनाज रखने की जगह किसी किले, महल या मजबूत कोठी के किसी बड़े कमरे में बनाई जाती थीं. 

लेकिन इतिहास में खासतौर पर मध्य या आधुनिक इतिहास में शायद ही ऐसी कोई इमारत होगी जिसके केवल बहुत ही ज्यादा अनाज के भंडार करने के मकसद से बनाया गया हो. फिलहास पटना का गोलघर इसी के लिए याद किया जाता है.

आज भले ही पटना के गोलघर को अनाज रखने की जगह के तौर पर इस्तेमाल ना किया जाता हो लेकिन इसे इसी मकसद से बनाया गया था.

1770 में जब अंग्रेज भारत में अपने पैर फैला रहे थे तब बिहार और उसके आसपास के इलाकों में पड़े भयंकर सूखे के बाद अनाज भंडारम के लिए एक मजबूत इमारत के निर्माण की जरूरत महसूस की गई थी.

उस दौर में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जनरल वारन हेस्टिंग ने गोलघर के निर्माण की योजना बनाई थी. 

इसके बाद ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जान गास्टिन ने 20 जनवरी 1784 को पटना में गोल के निर्माण की शुरुआत कराई थी. इसके बाद 20 जुलाई 1786 में इसे बना कर पूरा कर लिया गया. 

उस समय इसका मालिकाना हक ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था. इसके बाद 1857 में अंग्रेजी सरकार इसकी मालिक हो गई थी. 

लेकिन आजादी के बाद जब बिहार भारत का हिस्सा बना तब से यह बिहार राज्य का हो गया. आज इसकी देखरेख की जिम्मेदारी पटना नगर निगम के पास है. 

गोलघर के भंडारण क्षमता करीब 1 लाख 40 हजार टन अनाज रखने की है. आज भले ही यह इमारत जर्जर हो चुकी है लेकिन इसकी मरम्मत भी की जा रही है. 

स्तूप के आकार की इस इमारत में 145 सीढ़ियां है जो इसके शीर्ष पर पहुंचा जा सकता है जहां से पूरा पटना शहर दिखाई देता है.