आपको मालूम है जय अम्बे गौरी आरती किसने लिखी थी और इसे कब गाया गया था? जानें
हिंदू धर्म में भगवान की पूजा के बाद आरती करने का महत्व है. हिंदू धर्म के सभी पूजा-पाठ, अनुष्ठान व धार्मिक कार्यक्रम में स्वाभाविक और अनिवार्य रूप से आरती गाई जाती है.
‘जय अम्बे गौरी’ की आरती की समाप्ति से पहले हम कहते हैं-‘कहत शिवानन्द स्वामी सुख संपति पावे..’ कौन हैं शिवानंद स्वामी और क्यों आरती में लिया जाता है इनका नाम.
मंदिर से लेकर घर सभी पूजा में आरती गाई जाती है. लेकिन आरती गाने वाले भक्तों में कई लोगों को यह मालूम नहीं होगा कि आखिर शिवानंद स्वामी कौन हैं.
दरअसल इनका वास्तविक नाम ‘शिवानंद स्वामी वामदेव पांड्या है. बाद में ये शिवानंद स्वामी कहलाएं. इनका जन्म गुजरात में हुआ और गुजराती भाषा में इन्होंने कई रचनाएं की.
ॐ जय अम्बे गौरी, मैय्या जय श्यामा गौरी…. ये आरती मंदिर से लेकर घर पर होती है और हर किसी की जुबान पर है. लेकिन आरती की समाप्ति में कहा जाता है. कहत शिवानन्द स्वामी सुख संपति पावे...
शिवानन्द स्वामी का नाम सुनकर शायद आपको ऐसा लगे कि, बीसवीं सदी के महान संत और ऋषिकेश स्थित डिवाइन लाइफ सोसाइटी के संस्थापक स्वामी शिवानन्द सरस्वती इसके रचयिता थे? लेकिन ऐसा नहीं है.
दरअसल, गुजरात में 16वीं शताब्दी में जन्में शिवानन्द वामदेव पांड्या द्वारा इस आरती की रचना की गई थी. पहली बार जय अम्बे गौरी आरती को सन् 1601 में देवी अम्बाजी के मंदिर में ‘यज्ञ’ की समाप्ति के दौरान गाया गया था.
अम्बे गौरी 'आरती' के रचयिता स्वामी शिवानंद के पूर्वज अंकलेश्वर से बडनगर होते हुए सूरत में आकर बसे थे और यहीं 1541 में शिवानंद वामदेव पांड्या का जन्म हुआ था, जोकि बाद में स्वामी शिवानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए.
शिवानंद वामदेव पांड्या शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और काव्य-साहित्य में इनकी गहरी रूचि थी. इनका मन हमेशा नर्मदा के तट पर ही रमता था.
यहां इन्होंने कई भजनों की रचना की, जिसमें ॐ जय अम्बे गौरी… आरती भी शामिल है. लेकिन उनकी रचनाएं पुस्तक के रूप में प्रकाशित नहीं हो सकी.
स्वामी शिवानंद के भजन, आरती आदि जन-जन में वर्षों से रचे-बसे हैं और आज भी हर हिंदू घर और मंदिरों में इनके द्वारा रचित आरती-भजन गाए जाते हैं.