क्या आपको पता है हर साल रथ यात्रा से पहले क्यों बीमार हो जाते हैं भगवान जगन्नाथ?
रथयात्रा से 15 दिन पहले यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को विशेष स्नान करवाया जाता है,
जिसके बाद ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए हैं और उनकी प्रतिमा को एक विशेष स्थान पर रखकर उनकी एक रोगी की तरह देख-भाल की जाती है
ये परंपरा से जुड़ी एक कथा है, जो इस प्रकार है- किसी समय पुरी में माधवदास नाम के एक प्रसिद्ध संत रहते थे, वे भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे
उनका कोई परिवार भी नहीं था. एक बार माधवदास काफी बीमार हो गए, जिससे उनका चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया
तब भगवान श्रीजगन्नाथ स्वयं सेवक बनकर माधवदास के घर पहुंचे और 15 दिनों तक उनकी खूब सेवा की
जब माधवदास थोड़े ठीक हो गए तो वे भगवान को पहचान गए. माधवदास ने भगवान जगन्नाथ से पूछा कि ‘आप चाहते तो एक पल में मेरा रोग दूर कर सकते थे, तो फिर आपने मेरी सेवा क्यों की?
भगवान ने कहा ‘ये रोग तुम्हारे कर्मों का फल है, जो तुम्हें भोगना ही पड़ता, नहीं तो तुम्हें फिर से अगला जन्म लेना पड़ता, जो मैं नहीं चाहता,इसलिए मैंने तुम्हारा रोग दूर नहीं किया
अभी भी तुम्हारे हिस्से का 15 दिनों का रोग बचा है. उसे मैं स्वयं ले लेता हूं और तुम्हें रोग मुक्त करता हूं.’ ऐसा बोलकर भगवान जगन्नाथ अंतर्धान हो गए
मान्यता है कि इसके बाद माधवदास ने भगवान जगन्नाथ की 15 दिनों तक एक रोगी की तरह सेवा की. यही परंपरा आज भी चली आ रही है
इन 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है. इसे ओसर घर कहते हैं. इस 15 दिनों के दौरान भगवान को रोगी की तरह भोजन दिया जाता है
इस अवधि में भगवान के कक्ष में प्रमुख सेवक और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं जा सकता. मंदिर के पट भी इस दौरान बंद रहते हैं