आपको मालूम है इंसान की मृत्यु के बाद बांस की ही अर्थी क्यों बनती है? जानें
इंसान की मृत्यु के बाद कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं निभाई जाती हैं, जिसमें एक महत्वपूर्ण परंपरा है मृत शरीर को अर्थी पर लिटाना.
यह परंपरा बहुत पुरानी है और इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं और व्यावहारिक कारण हैं.
वंसत जी महाराज के अनुसार, बांस की अर्थी इसलिए बनती है क्योंकि बांस में एक विशेष गुण होता है जिससे यह मृत्यु जनित आत्माओं को स्वीकार करता है.
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद आत्मा के शरीर से निकलने की मान्यता होती है और बांस पर मृत शरीर को लिटाने से आत्मा को शांति मिलती है.
कुछ लोग इसे व्यावहारिक कारण मानते हैं, क्योंकि बांस हल्का और आसानी से उपलब्ध होने वाला पदार्थ है.
पहले के समय में बांस का उपयोग अर्थी बनाने में किया जाता था, जो सस्ती और सुविधाजनक थी. धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई और आज भी लोग इसे निभाते हैं.
हिंदू धर्म में शव को जलाने की परंपरा है, जिसे शमशान में किया जाता है. इसके बाद, अस्थियों को गंगा नदी में प्रवाहित किया जाता है, ताकि आत्मा को मुक्ति मिल सके.
इसके अलावा, तेरहवीं के दिन मृतक की आत्मा को शांति और शक्ति प्रदान करने के लिए तेरहवीं भोज का आयोजन किया जाता है.
इस भोज में जो खाना दिया जाता है, वह आत्मा को शक्ति और शांति प्रदान करने का कार्य करता है.