आपको मालूम है दिवाली के दिन सिख धर्म के लोग क्यों मनाते हैं 'बंदी छोड़ दिवस'? जानें
दिवाली के दिन सिख धर्म के लोग ‘बंदी छोड़ दिवस’ के नाम से त्यौहार मनाते हैं. इस त्यौहार को मनाने के पीछे का इतिहास बड़ा रोचक है. आइए जानते हैं
जानकारी के मुताबिक सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद साहिब जी को बंदी बना लिया
उसने हरगोविंद साहिब जी को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे, लेकिन संयोग से जब जहांगीर ने गुरू हरगोविंद साहिब जी को कैद किया, वह बहुत बीमार पड़ गया
काफी इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था. तब बादशाह के काजी ने उसे सलाह दी कि वह इसलिए बीमार पड़ गया है क्योंकि उसने एक सच्चे गुरु को कैद कर लिया है
अगर वह स्वस्थ होना चाहता है तो उसे गुरु हरगोविंद सिंह को तुरंत छोड़ देना चाहिए. कहते हैं कि अपने काजी की सलाह पर काम करते हुए जहांगीर ने तुरंत गुरु को छोड़ने का आदेश जारी कर दिया
लेकिन गुरु हरगोविंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे जेल से बाहर तभी जायेंगे जब उनके साथ कैद सभी 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा किया जायेगा
गुरू जी का हठ देखते हुए उसे सभी राजाओं को छोड़ने का आदेश जारी करना पड़ा, लेकिन यह आदेश जारी करते समय भी जहांगीर ने एक शर्त रख दी
उसकी शर्त थी कि कैद से गुरू जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे जो सीधे गुरू जी का कोई अंग या कपड़ा पकड़े हुए होंगे
उसकी सोच थी कि एक साथ ज्यादा राजा गुरू जी को छू नहीं पायेंगे और इस तरह बहुत से राजा उसकी कैद में ही रह जायेंगे
जहांगीर की चालाकी देखते हुए गुरू जी ने एक विशेष कुरता सिलवाया जिसमें 52 कलियां बनी हुई थीं. इस तरह एक-एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गये
जहांगीर की कैद से आज़ाद होने के बाद जब गुरू हरगोविंद सिंह जी वापस अमृतसर पहुंचे तब पूरे गुरुद्वारे में दीप जलाकर गुरू जी का स्वागत किया गया
वहीं कुछ समय के बाद इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाये जाने का फैसला लिया गया