आपको मालूम है महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के भाई बलराम ने क्यों भाग नहीं लिया था?
महाभारत युद्ध में जिस ओर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं थे, वो पांडवों का पक्ष था, जो सदैव धर्म का अनुसरण करने वाले थे.
दूसरी ओर कौरव थे, जो बुराइयों में लिप्त रहे और उनकी ओर से पृथ्वी के बड़े-बड़े महारथी और राक्षस लड़े.
हालांकि, इस युद्ध से पहले कौरवों ने दुर्योधन को द्वारका भेजकर श्रीकृष्ण-बलराम से मदद मांगी थी. श्रीकृष्ण ने उसे सैन्य मदद दी भी और एक पक्ष भी चुन लिया.
मगर, उनके बड़े भाई बलराम ने इस महायुद्ध में कोई भूमिका नहीं निभाई. न उन्होंने कौरवों का पक्ष लिया और न ही पांडवों का.
अब बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि जब श्रीकृष्ण युद्ध में शामिल हुए तो उनके भाई बलराम ने क्यों भाग नहीं लिया? क्या उनकी कोई मजबूरी थी या कोई और वजह थी? इस सवाल के भी जवाब ग्रंथ में हैं.
20 वर्षों से महाभारत के प्रसंग भक्तों को सुना रहे कथावाचक भगवानसिह दास कहते हैं कि श्रीकृष्ण-बलराम के बारे में धर्म-शास्त्रों का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि दोनों एक ही थे.
उनके शरीर अलग थे, अवतार अलग लिया था किंतु वे कभी एक-दूजे के विपरीत नहीं गए.
जब श्रीकृष्ण से मिलने के बाद दुर्योधन बलराम के पास पहुंचा तो उन्होंने सिर्फ यह कहा – ‘मेरा आर्शीवाद सदैव तुम भाइयों के साथ है. पांडव भी तुम्हारे भाई ही हैं. युद्ध समाधान नहीं हो सकता. जैसे मुझे तुम प्रिय हो, वैसे ही पांडव भी हैं.’
बलराम जी ने पांडवों से भी ऐसा कहा- ‘मैं चाहता हूं, तुम भाइयों (कौरव-पांडवों) में मेल हो जाए. कान्हा से भी मैंने कहा था कि हमें युद्ध में नहीं पड़ना चाहिए.
अब जब युद्ध होने वाला है और कान्हा जिस तरफ हैं, मैं उनके विपक्ष में नहीं जा सकता. वैसे भी दुर्योधन और भीमसेन दोनों मेरे शिष्य हैं.
मैंने दुर्योधन को भी यही कहा कि दोनों पर मेरा स्नेह है. मुझे कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर अच्छा नहीं लगता. अत: मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं.’