नवरात्रि के अंतिम दिनों में दुर्गा पूजा और दशहरा की धूम देशभर में रहती है, लेकिन पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का नजारा ही कुछ और रहता है.
दरअसल, नवरात्रि के 10वें यानी दशमी के दिन बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं. जिसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है.
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में पांच दिन रुकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है.
कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है. साथ ही दुर्गा मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाते हैं.
सुहाग की लंबी उम्र सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं.
धुनुची नृत्य की परंपरा सिंदूर खेला के दिन बंगाली समुदाय में धुनुची नृत्य किया जाता है. बता दें कि ये खास तरह का नृत्य मां दुर्गा को खुश करने के लिए किया जाता हैं.
धार्मिक महत्व जानें कहा जाता है कि सबसे पहले लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था. ऐसा करने से मां दुर्दा उनके सुहाग की उम्र लंबी करेंगी.