इस्लाम धर्म में ईद उल अजहा दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. ईद उल अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है.

ईद उल अजहा को बकरीद, बकरा ईद अथवा ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर में 12 महीने होते हैं और इसका धुल्ल हिज इसका अंतिम महीना होता है.

इस महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जाता है, जो कि रमजान का महीना खत्म होने के 70 दिन बाद आता है.

बकरीद के दिन सबसे पहले ईद-उल-अजहा की नमाज की अदा की जाती है उसके बाद बकरे की कुर्बादी दी जाती है. कुर्बानी के बकरे को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जाता है.

पहले भाग रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है, वहीं दूसरा हिस्सा गरीब, जरूरतमंदों को दिया जाता है जबकि तीसरा हिस्सा परिवार के लिए होता है.

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की इबादत में खुद को समर्पित कर दिया था.

एक बार हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे थे. वह खुदा में पूरा विश्वास रखते थे.

तब उन्होंने इस सपने को अल्लाह का पैगाम माना और इसे पूरा करने का निर्णय लिया. हजरत इब्राहिम ने खुदा के लिए अपने बच्चे को कुर्बान करने का फैसला लिया.

ईद-अल-अजहा को बकरीद इस वजह से भी कहा जाता है, क्योंकि इस पर्व पर मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी करते हैं.