देश के इस गांव में किसी भी घर में नहीं बनता है खाना, जानें ऐसा क्यों?
उत्तर गुजरात के चांदणकी गांव में घर-घर चूल्हा नहीं जलता. ग्रामीण सामूहिक रूप से एक ही रसोई में खाना खाते हैं
यह व्यवस्था गांव में रह रहे बुजुर्गों के लिए बाहर बसे युवाओं ने की है, ताकि माता-पिता को रोज भोजन बनाने की झंझट न हो
ग्रामीणों की औसत आयु 55 से 60 साल है. मई 2015 से इस गांव में यह व्यवस्था लागू है
1000 की जनसंख्या वाले गांव के करीब 900 लोग बाहर रहते हैं. यहां रहने वाले सभी 55 से 60 साल की आयु वर्ग के हैं
चांदणकी को तीर्थ-निर्मल ग्राम सहित कई पुरस्कार भी मिले हैं
पूर्व सरपंच रतिलाल पटेल बताते हैं कि गांव के अधिकांश परिवार काम-धंधा और बच्चों की अच्छी शिक्षा की खातिर बाहर रहते हैं
एक-दो दिन के लिए गांव आएं तो भोजन की दिक्कत आती थी. 5 किमी दूर कस्बे में जाना पड़ता था. इसलिए बच्चों ने मिल कर सामूहिक रसोई का प्रयोग किया
मई 2015 से इसे विधिवत लागू कर दिया है. स्थायी सदस्य को 20 रुपए एक समय भोजन का देना होता है. आगंतुक के लिए 25 रुपए तय किए गए हैं