45 साल बाद चर्चा में पाक के पूर्व PM की फांसी का मामला, क्या है वजह?
पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी का केस 45 साल बाद अचानक फिर चर्चा में आ गया है.
पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा ने मंगलवार जुल्फिकार अली भुट्टो की विवादास्पद फांसी का जिक्र किया.
उन्होंने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट और देश की सेना के लिए अपनी पिछली गलतियों को सुधारने और अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने का एक अवसर हो सकता है.
चीफ जस्टिस ईसा की यह टिप्पणी उनकी अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की 9 सदस्यीय बड़ी पीठ की ओर से मामले की सुनवाई के दौरान की गई.
दरअसल, 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो (51 साल) को हत्या के मामले में उकसाने के लिए दोषी ठहराया गया था और फांसी की सजा दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच में चार जजों ने लाहौर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था, जबकि तीन ने जुल्फिकार अली भुट्टो को आरोपों से बरी कर दिया था.
उसके बाद 4 अप्रैल, 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई थी. हालांकि, भुट्टो का परिवार आज भी न्याय की मांग कर रहा है.
साल 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भी सुप्रीम कोर्ट परामर्श अधिकार क्षेत्र के तहत अपने ससुर भुट्टो को फांसी की सजा दिए जाने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी.
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह ने टिप्पणी की कि अदालत मामले की योग्यता की जांच नहीं कर सकती क्योंकि फैसला पहले ही घोषित किया जा चुका है.
फिलहाल, मामले की सुनवाई 26 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई है.
न्यायाधीश कैसर राशिद खान ने कहा था कि मामले में मौजूद सबूतों के आधार पर एक बिल्ली को भी मौत की सजा नहीं दी जा सकती. खान ने यह भी कहा कि अदालत अनुच्छेद 187 के तहत भुट्टो मामले में फैसला सुना सकती है.