आपने कभी सोचा है आखिर रात में ही क्यों की जाती है दिवाली की पूजा? यहां जानें
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, दिवाली पर लक्ष्मी पूजन हमेशा रात में या सूर्यास्त के बाद ही किया जाता है. इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिषीय कारण मिलते हैं, जो इस परंपरा को विशेष बनाते हैं.
वहीं, धर्म शास्त्रों की मानें तो लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए. हालांकि, बाकी दिनों में सुबह, शाम या फिर किसी भी समय मां लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं.
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, रात का समय माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय समय है. दिवाली के दिन अमावस्या होती है, जब चांद नहीं दिखाई देता और काफी अंधेरा होता है.
ऐसे में दिवाली की रात को घरों में दीप जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है. मां लक्ष्मी को ‘ज्योति’ का प्रतीक माना गया है और रात के समय दीप जलाने से अज्ञानता और अंधकार को दूर करने का संदेश जाता है.
इसके अलावा, माना जाता है कि इस रात मां लक्ष्मी और भगवान गणेश विचरण के लिए पृथ्वी लोक पर आती हैं और भक्तों को कर्म के अनुसार फल देती हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, और तभी से उनकी दिवली के दिन पूजा की जाती है.
ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन की ये घटना भी रात में हुई थी, जिसकी वजह से लक्ष्मी पूजा के लिए रात का समय ज्यादा शुभ माना जाता है.
पौराणिक मान्यता ये भी है कि रात के समय मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उन्हीं घरों में वास करती हैं जो प्रकाशमय और साफ होते हैं.
ज्योतिष के मुताबिक, दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ मुहूर्त अमावस्या के बाद का समय होता है, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है.
प्रदोष काल सूर्यास्त से लेकर लगभग तीन घंटे तक का समय होता है. इस समय को सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है, क्योंकि ये समय सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह का होता है.