आपने कभी सोचा है सिंदूर दान के समय क्यों ढका जाता है दुल्हन का चेहरा? यहां जानें

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से विवाह संस्कार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस संस्कार में वर और कन्या का गठबंधन होता है. विवाह संस्कार को इस धर्म में एक यज्ञ के समान दर्जा दिया गया है.

इसका सबसे अंतिम रस्म सिंदूर दान का रस्म होता है. जिसके बाद वर कन्या नए जीवन का आरंभ एक साथ करते हैं. मगर क्या आप जानते हैं इस दौरान दुल्हन को परदे में क्यों रखा जाता है? आइए जानते हैं. 

दरअसल, विवाह संस्कार के दौरान कई महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती है. इसमें सिंदूर दान का रस्म त्रेतायुग से चला आ रहा है. कहा जाता है पहली बार प्रभु श्री राम ने माता सीता की मांग में सिंदूर भरा था. 

इतना ही नहीं माता पार्वती भी भगवान शंकर के नाम की सिंदूर लगाती थीं. मान्यता है कि सिंदूर अखंड सौभाग्य का प्रतीक है जिसे लगाने से जन्म जन्मांतर तक का साथ बंध जाता है.

सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य परदे के पीछे ही होता है. विवाह का अंतिम रस्म सिंदूर दान का होता है. इस दौरान पहली बार दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को देखत हैं. 

ब्राह्मणों की आज्ञा से इस दौरान सिंदूर दान किया जाता है. जिसे देखने का अधिकार केवल दूल्हा और दुल्हन को होता है. 

ये बातें पलामू जिले के मेदिनीनगर शहर रेड़मा स्थित काली मंदिर के पुजारी श्याम कुमार पांडे ने कही. उन्होंने बताया कि सिंदूर को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. 

इस दौरान पहली बार दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को देखते हैं और इसके साथ हीं एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में मानते हैं.

पहली पार दूल्हा दुल्हन के सिर के बीचों-बीच मांग पर सिंदूर लगाता है. हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं जिसका नियंत्रण सिर से होता है. 

सिंदूर भरने से सूर्य मजबूत होता है जो कि मांग के पिछले हिस्से में विराजित होता है. जहां सिंदूर दान होता है वहां वो सबसे शीर्ष भाग होता है. जो कि मेष राशि का स्थान माना जाता है. जिसका स्वामी मंगल है और मंगल का रंग लाल होता है. इसलिए इसे शुभ माना जाता है.

Marriage Rituals:

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