आपको मालूम है पावर प्लांट में कोयले से बिजली कैसे बनती है? यहां जान लीजिए

इस दुनिया में बिजली एक ऐसी चीज है जिस पर मानव सभ्यता पूरी तरह से निर्भर है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोयले से बिजली कैसे बनती है और फिर उसे बड़ीबड़ी तारों के जरिए हमारे घर तक कैसे पहुंचाया जाता है. अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं.

बिजली बनाने के लिए जिस चीज का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है वो है कोयला. देश में 75% बिजली का उत्पादन कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से ही होता है.

हजार मेगावाट का कोल प्लांट एक दिन में 9000 टन से भी ज्यादा कोयले का इस्तेमाल करता है. यानी की अगर एक मालगाड़ी में 100 टन कोयले के 90 डिब्बे है तो उसे पुरी मालगाड़ी का इस्तेमाल एक ही दिन में हो जाएगा. 

अब बिजली बनाने के लिए बॉयलर से लेकर जनरेटर तक कई बड़े-बड़े उपकरणों को चलाने की जरूरत पड़ती है, जिन्हें चालू करने में ही कई घंटे लग जाते हैं. 

ऐसे में कोयले से चलने वाला पावर प्लांट 24 घंटे काम करता रहे तो ही सस्ते में बिजली बन सकती है. इसी वजह से प्लांट के बड़े हिस्से में सिर्फ कोयले का स्टोरेज बनाया जाता है ताकि कभी कोयले की कमी ना आ सके. 

जब मालगाड़ियां कोयले को लेकर प्लांट में पहुंचती है तो एक-एक करके सभी डिब्बों को अलग किया जाता है और पानी के फव्वारे के नीचे से गुजारा जाता है जिससे कोयला थोड़ा गीला हो जाता है ताकि जब आगे डिब्बो को पलटने की बारी आए तो डस्ट न उड़े. 

अब गीले कोयले वाले उन सभी डिब्बों को बारी बारी से एक निर्धारित जगह पर लाया जाता है जहां एक मशीन उन्हें उठाकर पूरा ही पलट देती है. 

जिससे उन डिब्बों का सारा कोयला कोल यार्ड में नीचे लगातार घूम रहे कन्वेयर बेल्ट पर गिरता रहता है. अब इस कोयले को फिर से कन्वेयर बेल्ट की मदद से बाउल मशीन में भेजा जाता है.

जो इन छोटे मोटे पत्थरों के रूप में एक दूसरे से चिपके कोयले को क्रश करके पाउडर का रूप दे देती है. इसके बाद इस ब्लैक पाउडर को कन्वेयर बेल्ट के जरिए ही विशालकाय बॉयलर में भेजा जाता है, जहां यह कोयला तुरंत आग पकड़ लेता है. 

अब पुरी तरह से जलने के बाद कोयले की जो भारी राख होती है वो नीचे गिर जाती है और जो हल्की राख होती है वो ऊपर उठती है. इस राख को Fly Ash कहा जाता है और इसे चिमनी के जरिए फिल्टर करके वातावरण में छोड़ दिया जाता है. 

अब कोयला जलने की वजह से जो आग बनी थी वो बॉयलर से होते हुए उस क्षेत्र में पहुंच जाती है जहां काफी ज्यादा वाटर ट्यूब्स होती है जिनमें पानी भरा रहता है.

ये सभी ट्यूब्स हीट करके पानी को स्टीम यानी भाप में बदल देती है. जब ये स्टीम सुपरहिट हो जाती है तो पाइप का आगे वाला हिस्सा खोल दिया जाता है जिससे स्टीम उन्हीं पाइप से ट्रेवल करते हुए आगे पहुंचती है. 

अब हम भाप को लेकर पावर प्लांट के उस हिस्से में पहुंचे जिसके बिना बिजली बनाना नामुमकिन है. जी हां. हम बात कर रहे हैं टरबाइन की जो पाइप से निकली स्टीम यानी हाई प्रेशर वेपर की मार खाते हुए तेजी से घूमने लगती है. 

अब टर्बाइन के घूमने की वजह से एक high mechanical energy generate होती है जिसे तुरंत एक बड़े जेनरेटर में भेजा जाता है और इसी मैकेनिकल पावर की वजह से जनरेटर की मैग्नेटिक फील्ड डिस्टर्ब हो जाती है और उनमें बिजली जेनरेट होने लगती है.