कैसे बनता है कैप्‍सूल? कितनी देर में पेट में घुलता है, जानें पूरा प्रोसेस 

हम आम तरह के जो भी कैप्सूल देखते हैं, वे अमूमन जिलेटिन के बने होते हैं. जिलेटिन से इसलिए कैप्सूल बनाया जाता है क्योंकि जिलेटिन दवाओं का एक मुख्य इनग्रेडिएंड या हिस्सा होता है.

जिलेटिन फूड प्रोडक्ट में भी पाया जाता है. कई बार जानवरों के चमड़े और हड्डियों को उबालकर जिलेटिन बनाया जाता है. यही जिलेटिन कैप्सूल बनाने में इस्तेमाल होता है.

ऐसे कैप्सूल हार्ड शेल के लिए बनाए जाते हैं. दूसरी ओर सॉफ्ट कैप्सूल या नरम खोल वाले कैप्सूल के लिए तेल, लिक्विड का इस्तेमाल होता है.

जिलेटिन आधारित दवाएं बाजार में बहुतायत में मिलती हैं क्योंकि ऐसे कैप्सूल सस्ती पड़ते हैं और दवाओं की कीमतें उचित रखने में मदद मिलती है.

जिलेटिन कैप्सूल खाने के तुरंत बाद पेट में घुल जाता है. कुछ मिनट का समय लगता है. कैप्सूल के साथ उसमें प्रयुक्त दवाएं शरीर में असर करना शुरू कर देती हैं.

जिलेटिन चूंकि जाववरों के चमड़े और हड्डियों से बनाए जाते हैं, इसलिए फार्मा इंडस्ट्री में वेजिटेरियन कैप्सूल का भी प्रचलन है.

ऐसे कैप्सूल जिलेटिन से न बनकर सेलुलोज से बने होते हैं. इस सेलुलोज को देवदार के रस से बनाया जाता है. इसमें जानवरों के किसी हिस्से का इस्तेमाल नहीं होता.

हालांकि वेजिटेरियन कैप्सूल बहुत महंगे पड़ते हैं, इसके बावजूद इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है. वजह ये है कि वेजिटेरियन कैप्सूल से किसी की धार्मिक भावना आहत नहीं होती.

वेजिटेरियन कैप्सूल में दो तत्व होते हैं-प्यूरिफाइड पानी और हाइड्रोक्सीप्रोपाइलमेथाइलसेल्युलोज या HPMC. ये दोनों तत्व पूरी तरह से कुदरती होते हैं जिनका शरीर पर कोई असर नहीं पड़ता. 

वेजिटेरियन आधारित कैप्सूल में लिक्विड, जेल या दवाओं के पाउडर भरे जाते हैं. इसमें कोई भी प्रिजर्वेटिव, शुगर, स्टार्च या अन्य कोई एडेड इनग्रेडिएंट नहीं मिलाया जाता.

इस तरह के कैप्सूल को हमारा पाचन तंत्र आसानी से पचा लेता है और यह सामान्य तौर पर जीओएम प्री होता है.