हाल ही में अतुल सुभाष सुसाइड केस के चलते ये मुद्दा फिर उठा है. हालांकि पत्नी और उसके परिवार पर लगाए आरोप अभी सही साबित नहीं हुए हैं.
इसी बीच आपको ये जानना जरूरी है कि पुरुष के पास भी बहुत से अधिकार है. वो क्या है और वे इनका कब और कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. आइए आपको बताते हैं.
लोगों के बीच यह एक सामान्य सोच है कि भारत में तलाक केवल कपल की सहमति से होता है या फिर यह केवल महिलाओं की याचिका पर होता है.
लेकिन आपको बता दें वास्तविकता ऐसा कुछ भी नहीं है. बिना सहमति के भी पुरुषों को तलाक की याचिका दायर करने का अधिकार है.
हिंदू विवाह अधिनियम (1955) और धार्मिक विवाह अधिनियम के तहत, पति को गुजारा भत्ता तभी मिल सकता है जब वह आर्थिक रूप से असमर्थ हो.
इस धारा के तहत, पुरुष उत्पीड़न, व्यभिचार (यानि विवाह से बाहर संबंध बनाना), परित्याग (यानि छोड़ दिया जाना) आदि कारणों को तलाक याचिका के आधार के रूप में पेश कर सकते हैं.
नियम और शर्तें अगर पति किसी कारण शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हैं और उनका आय का कोई स्रोत नहीं है, तो वह गुजारा भत्ता मांग सकते हैं.
अदालत का निर्णय: भारतीय न्यायालयों ने कुछ मामलों में यह भी माना है कि यदि पत्नी पर्याप्त संपत्ति या आय वाली है, तो वह अपने पति को आर्थिक सहायता दे सकती है.
विवाहिता की जिम्मेदारी: पत्नी के लिए लागू होता है, लेकिन अगर पति आर्थिक रूप से कमजोर है और पत्नी सक्षम है, तो अदालत पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकती है.
इसलिए, यह गुजारा भत्ता का अधिकार विशेष परिस्थितियों पर आधारित है और यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि क्या पति की स्थिति भत्ता पाने योग्य है या नहीं.
भारतीय कानून में आम धारणाओं के विपरीत, पुरुषों के लिए तलाक, पालन-पोषण, बच्चों की कस्टडी और झूठे आरोपों से बचाव के लिए कई प्रावधान मौजूद हैं.
साथ ही पुरुष भी बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकते हैं. हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के तहत पिता को भी बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार है.