इस गांव में अपनी शादी में नहीं जाता दूल्हा, इस इंसान संग फेरे लेती है दुल्हन
हम बात कर रहे हैं गुजरात के छोटा उदेपुर की जहां अपनी ही शादी में दूल्हा नहीं जाता है.
यहां के तीन गांव सुरखेड़ा, अंबाला और सनाड़ा में रहने वाले राठवा समाज की शादियों में दूल्हा गायब रहता है.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर बिना दूल्हे के शादी कैसे होती होती तो चलिए हम आपको बताते हैं. दरअसल में दूल्हे के परिवार की कोई और कुंवारी कन्या दूल्हे की ओर से जाती है.
भले ही शादी में दूल्हा न जाता हो, लेकिन वो शेरवानी पहनता है, साफा भी धारण करता है, तलवार लेकर तैयार होता है, लेकिन वो घर पर अपनी मां के साथ रहता है.
उसकी बहन दुल्हन के दरवाजे पहुंचती है, उससे शादी करती है और उसे लेकर घर वापस आती है. दूल्हे की बहन भी एक दुल्हन की तरह सजती है और ऋंगार करती है.
इसके साथ ही शादी के दौरान दोनों की वरमाला होती है जिसमें दुल्हन अपनी ननद को माला पहनाती है और ननद अपनी भाभी को.
इतना ही शादी में फेरे भी लिए जाते हैं. अग्नि को साक्षी मानकर दोनों फेरे लेती हैं.
इस रिवाज के पीछे बहुत बड़े कारण को लेकर बताया जाता है कि इस समाज के लोगों का कहना है कि ये परंपरा करीब 300 साल पुरानी है.
अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव के आराध्य देव भरमादेव और खूनपावा हैं. ये आदिवासी समाज के आराध्य देव भी हैं. ऐसी मान्यता है कि भरमादेव कुंवारे देव हैं.
इसलिए अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव का कोई लड़का बारात लेकर जाएगा, तो उसे देव का कोपभाजक बनना होता है.
यहां पर रिवाज असल तौर पर भगवान के कोप से बचने के लिए ग्रामीणों द्वारा अपनाया जाता है.