भारत के राष्ट्रपति पद की शोभा बढ़ा चुके एपीजे अब्दुल कलाम और नोबेल पुरस्कार विजेता चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम तो आपने जरूर सुने होंगे. 

लेकिन इतिहास में एक साइंटिस्ट ऐसे भी थे, जिनका नाम काफी कम लोगों ने सुना होगा, लेकिन उनकी अभूतपूर्व खोज ने धरती पर लाखों लोगों की जान बचाने में अहम किरदार निभाया था. 

ये भारतीय साइंटिस्ट डॉ. उपेंद्रनाथ ब्रह्मचारी थे. जिनके काम की धूम इस कदर थी कि उनके नाम पर एक बार नहीं, बल्कि 6 बार प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार देने पर विचार किया गया.

भारत की ओर से पहली बार साल 1929 में दो साइंटिस्टों का नाम नोबेल के लिए भेजा गया. उनमें फिजिक्स के लिए डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन और डॉ. उपेंद्रनाथ ब्रह्मचारी का नाम था 

साल 1942 में डॉ. उपेंद्रनाथ ब्रह्मचारी नाम पांच अलग-अलग शख्सियतों द्वारा फिर से नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. 

लेकिन उस साल द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से दुनिया भर में अशांति फैली हुई थी. जिसकी वजह से नोबेल पुरस्कार के लिए विजेताओं के चयन की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी.

डॉ. ब्रह्मचारी ने अपने कार्यकाल के दौरान कालाजार एक घातक परजीवी महामारी थी, जिसने कई देशों में लाखों लोगों की जान ले ली थी.

आपको बता दें उन्होंने अपने जीवन के 20 साल बिना साइड इफेक्ट वाला सस्ता इलाज खोजने में समर्पित कर दिए.

1920 के दशक में डॉ. ब्रह्मचारी द्वारा यूरिया स्टिबामाइन की खोज करने के बाद इस बीमारी से होने वाली मृत्यदर साल 1925 तक 95 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत रह गई थी. 

डॉ. ब्रह्मचारी की वजह से हजारों-लाखों लोग की जान बची थी और वे मरीजों के लिए मसीहा बन गए थे. मेडिसिन के क्षेत्र में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता.