कई बार आपने सुना होगा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को बिना खुदाई के ये पता चल जाता है कि नीचे कोई इमारत है या नहीं है

वहीं स्कूलों की किताबों में आपने मानव सभ्यता के हजारों सालों पुराने इतिहास के बारे में पढ़ा होगा. इसे लेकर कई बार वैज्ञानिक अलग-अलग दावा भी करते हैं.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा हैं कि आखिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ये कैसे पता चलता है कि कहां पर मंदिर है और कहां मस्जिद है.

दरअसल, आज हम आपको बताएंगे कि किन तकनीकों का इस्तेमाल करके ASI को ये आसानी से पता चलता है कि धरती के नीचे क्या है. 

साइज़्मिक मेथड ASI की टीम साइज़्मिक वेव्स का इस्तेमाल करती है. ये एक तरह की तरंग है, जो भूकंप के समय निकलती है.

यह वेव्स भूकंप के दौरान उत्पन्न होती हैं और भूकंपीय गतिविधियों के कारण धरती के नीचे मौजूद संरचनाओं का पता चलता है.

इन तरंगों के माध्यम से एएसआई को यह जानकारी मिलती है कि कहां पर कोई इमारत या बनावट हो सकती है. 

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मेथड यह तकनीक धरती से निकलने वाली मैग्नेटिक तरंगों का उपयोग करती है. इन तरंगों को मैग्नेटोमीटर के जरिए डिटेक्ट किया जाता है. 

जब कोई बनावट जैसे सड़क या दीवार जमीन के नीचे दबा हो, तो उसके कारण धरती के मैग्नेटिक फील्ड में बदलाव आता है. इस बदलाव से यह पता चलता है कि वहां कुछ है. 

ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रेडार यह एक और महत्वपूर्ण तकनीक है, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का इस्तेमाल करती है. इस तकनीक में मशीन से तरंगें जमीन के अंदर भेजी जाती हैं 

इतना ही नहीं अंदर जाकर तरंगें जिस हिसाब से रिफ्लेक्ट होती हैं, उस हिसाब से कंप्यूटर पर ज़मीन के अंदर दबे ढांचे की तस्वीर बन जाती है. इसको एक्स-रे टाइप भी कह सकते हैं.