वहीं इस जगह को भीमबैठका कहने के पीछे की वजह ये है कि यहां पर पांडवों ने अपना अज्ञातवास काटा था. पांडवों में भीम सबसे भारी थे. इसलिए ही इस जगह को भीमबेटका कहा जाना लगे.
शोधकर्ताओं के अनुसार, यहां पाई गई चित्रकारी में से कुछ तो करीब 30 हजार साल पुरानी तक हैं. हैरानी की बात ये है कि इन चित्रों में जो रंग इस्तेमाल है वो आज भी वैसे के वैसे है.
इतिहास के जानकार आशीष भट्ट के अनुसार, पेंटिंग में इस्तेमाल हुए रंगों को काले मैगनीज ऑक्साइड, लाल हेमटिट और चारकोल के संयोजन से तैयार किया गया था.