फिल्मों में अदालत का दृश्य अक्सर दिखाया जाता है. एक तरफ आरोपी, दूसरी तरफ गवाह, और ऊंची कुर्सी पर बैठे जज.

इन सबके बीच न्याय की देवी (Lady Justice) की मूर्ति होती है. इस मूर्ति के एक हाथ में तलवार और दूसरे में तराजू होता है, जबकि आंखों पर पट्टी बंधी होती है.

अब सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी के नए स्वरूप का अनावरण किया गया है. इस नई मूर्ति में आंखों पर पट्टी नहीं है.

वहीं नई मूर्ति के एक हाथ में तराजू तो है लेकिन दूसरे हाथ में अब तलवार की जगह भारत का संविधान है.

न्याय की देवी की मूर्ति में इन बदलावों के गहरे मायने हैं. आइए समझते हैं कि नई मूर्ति और पुरानी मूर्ति में क्या फर्क है और इसका क्या संदेश है.

नई मूर्ति में पहले की तरह एक हाथ में तराजू है. इसका मतलब है कि अदालत हर पक्ष को सुनेगी और सभी को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा.

पुरानी मूर्ति के दूसरे हाथ में तलवार होती थी, जो कानून के सम्मान का प्रतीक थी. अदालत जरूरत पड़ने पर बल का इस्तेमाल कर दोषी को सजा देती थी और निर्दोष की रक्षा करती थी.

नई मूर्ति में तलवार की जगह संविधान थमाया गया है, क्योंकि संविधान न्याय व्यवस्था की नींव है. यह समानता, न्याय और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है.

जहां तलवार अधिकार और सजा का प्रतिनिधित्व करती थी, वहीं संविधान न्याय के सिद्धांतों का प्रतीक है.

पुरानी मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी होती थी, जो कानून की निष्पक्षता का संकेत था. यह दिखाता था कि कानून सबको समान मानता है, चाहे वह कोई भी हो.

नई मूर्ति में आंखों से पट्टी हटा दी गई है. इसका संदेश है कि कानून अब सबकुछ देखेगा और बिना किसी भेदभाव के न्याय करेगा.