एक ऐसा राजा जिसकी दाल में लगता था 'सोने की मोहर' का छौंक, क्या आप जानते हैं नाम?

सवाई माधोसिंह द्वितीय का समय खानपान की जीमणारों के कारण बहुत मशहूर रहा. 

आपको जानकर हैरान होगी लेकिन महाराजा को सोने के थाल में भोजन परोसा जाता था.एक समय में करीब अस्सी सेर के छप्पन भोग व्यंजन बनते थे. 

करीब 933 ग्राम का एक सेर हुआ करता था और चांदी की देगची में दाल बनती, जिसमें स्वर्ण मोहर का छौक लगता था.

सियाशरण लश्करी के मुताबिक चांदी के भगोने में दूध को कई बार गरम कर उसमें भी स्वर्ण मोहर को चूल्हे में लाल कर छौका लगाते थे.

शाही रसोवड़े का मासिक खर्च 28 हजार चांदी के रुपए था. कई बार माधोसिंह रात को तीन बजे भोजन करने उठ जाते. ऐसे में रसोवड़ादार सतर्क रहते थे. 

सिटी पैलेस स्थित मुबारक महल के पास रसोवड़े की ड्योढ़ी में दर्जनों हलवाई, राज मेहरा और भोजन चखने वाले चखणों की भरमार रही. 

उनके नाश्ते में सवा दो सेर कलाकंद और कचोरी हनुमान का रास्ता के हलवाइयों से आती.

वैद्य नंदकिशोर माधोसिंह के लिए स्वर्ण भस्म का मुरब्बा बनाते. शाही रसोवड़े का मासिक खर्च 28 हजार चांदी के रुपए था.