बढ़ते तापमान के वजह से धरती पर खतरा बढ़ता जा रहा हैं, जिसका जिम्मेदार खुद इंसान है. 

इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में चेताया है कि वर्ष 2100 तक धरती के औसत तापमान में पूर्व औद्योगिक काल के मुकाबले 2 डिग्री से ज्यादा का इजाफा हो सकता है.

यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो लू का प्रकोप वर्तमान के मुकाबले कई गुना बढ़ जाएगा, वहीं ग्लेशियर भी पिघलने लगेंगे. 

इसका असर यह होगा कि समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा और समंदर के किनारे मौजूद कई शहर इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएंगे. 

साथ ही टॉयलेट पेपर - घर की सबसे ज़रूरी चीज़ मानी जाती है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. 

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि टॉयलेट रोल के इस्तेमाल से पर्यावरण पर कितना असर पड़ता है?

कई स्रोतों के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि टॉयलेट पेपर बनाने के लिए हर दिन लगभग 27,000 पेड़ काटे जाते हैं, यानी हर साल 9.8 मिलियन पेड़. 

इससे अब हमें समझ जाना चाहिए कि इतनी बड़ी तादात में अगर पेड़ काटे जाएंगे तो हमें आगे चलकर ऑक्सीजन (Oxygen) मिलने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है 

वहीं प्लास्टिक खाने से हर साल 10 लाख समुद्री जीव-जंतुओं की मौत हो जाती है. दुनियाभर में लोग हर 12 मिनट में प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

आपको बता दें कि प्लास्टिक बैग को डीकंपोज (Decompose) होने में 1000 साल लगते हैं. प्लास्टिक प्रदूषण मनुष्यों, पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. 

हर साल, दुनिया में लगभग 430 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, यह आंकड़ा 1950 के दशक से लगातार बढ़ रहा है.

प्रतिदिन, प्लास्टिक से भरे 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर प्लास्टिक दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंका जाता है. प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है.