लेकिन, कुछ लोग बिल्ली पालने के पीछे शास्त्र को भी एक वजह मानते हैं. इनका मानना रहता है कि बिल्ली को भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही आभास हो जाता है. साथ ही ये घर के लिए भी शुभ होती है.
जिन घरों में बिल्ली पाली जाती है, वहां इस बीमारी के संक्रमण की आशंका ज्यादा रहती है. बिल्ली संक्रमित मांस खाती है और फिर अपने मल के जरिए इस बीमारी के परजीवी फैला देती है.
इसके अलावा नवजात शिशुओं में भी इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. बिल्ली के आसपास बने होने या फिर संक्रमित व्यक्ति के पास रहने पर इनका मस्तिष्क तो प्रभावित होता ही है, आंखों की रोशनी भी जा सकती है.
शरीर का कोई अन्य अंग भी इससे प्रभावित हो सकता है. मरीज में इसके लक्षण तीन हफ्तों के दौरान दिखते हैं. जैसे जोड़ों में दर्द, बुखार, सर्दी-खांसी और सांस लेने में समस्या हो जाती है.
इसके अलावा मरीज को बात-बात पर गुस्सा आना भी इसका एक लक्षण है. गंभीर हालातों में मरीज किसी को मारने या खुदकुशी करने तक भी आ सकता है.
डॉक्टर का कहना है कि टॉक्सोप्लाजमोसिस एक तरह के परजीवी टी. गोंडियाई से होने वाला संक्रमण है. इसे ‘क्रेजी कैट लेडी सिंड्रोम’ के नाम से भी जाना जाता है.