इसकी शुरूआत 1988 में लद्दाख के कुछ कॉलेज स्टूडेंट्स की ओर से की गई थी. इन्हीं स्टूडेंट में सोनम वांगचुक भी शामिल थे, जोकि काफी मशहूर शिक्षा सुधारक हैं.
SECMOL कोई सामान्य स्कूल नहीं है. यहां पर अन्य स्कूलों की तरह करिकुलम फॉलो नहीं किया जाता है. बल्कि स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल साइंस नॉलेज से लेकर समाजिक मुद्दे जुड़ी चीजें सिखाई जाती हैं.
इस स्कूल में एकेडेमिक नॉलेज की बजाए बच्चों में व्यावहारिक और सामाजिक गुण और स्किल्स डेवलप करने में जोर दिया जाता है.
स्कूल की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार 10वीं क्लास में फेल या ड्रॉप आउट या फिर 10वीं पास लेकिन कुछ सालों के गैप वाले स्टूडेंट्स एडमिशन ले सकते हैं.
लेकिन हर आवेदक को लद्दाखी आनी चाहिए. दिव्यांग, अनाथ, अकेली मां की संतान जैसे उम्मीदवारों को स्पेशल वेटेज भी मिलता है. साथ ही जरूरतमेंद छात्रों के लिए स्पांसरशिप भी उपलब्ध कराई जाती है.
साथ ही यहां पर पढ़ाई के लिए कोई फीस नहीं ली जाती है. लेकिन छात्रों के पास हर दिन के लिए काम और जिम्मेदारियां दी जाती हैं और वह SECMOL कैम्पस को चलाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
आपको बता दें बच्चों से केवल खाने के हर महीने 2000 रूपए लिए जाते हैं. इसके अलावा रहना, पढ़ाई और अन्य सुविधाएं पूरी तरह मुफ्त हैं.