टाटा ग्रुप का पहला बिजनेस जिसे जमशेदजी ने कर दिया था बंद, आखिर क्‍या थी वजह?

टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने जब शिपिंग उद्योग में भारी मुश्किलों का सामना किया तो उन्होंने 1890 के दशक में टाटा शिपिंग लाइन को बंद करने का फैसला लिया. 

एक नई किताब में इस फैसले को विस्तार से बताया गया है. यह दिखाता है कि कैसे जमशेदजी टाटा मुश्किल समय में घाटे को कम करने और ज्‍यादा फायदेमंद कामों पर फोकस करने के लिए कठोर फैसले लेने में माहिर थे.

जमशेदजी ने 'टाटा लाइन' की शुरुआत की थी जो टाटा नाम का पहला व्यवसाय था. इसका मकसद अंग्रेजी कंपनी पी एंड ओ के एकाधिकार को चुनौती देना था. इसका 1880 और 1890 के दशक में भारत से होने वाले शिपिंग पर दबदबा था.

टाटा समूह के दो अनुभवी लोग आर. गोपालकृष्णन और हरीश भट्ट ने अपनी किताब 'जमशेदजी टाटा - पावरफुल लर्निंग्स फॉर कॉर्पोरेट सक्सेस' में लिखा है कि ब्रिटिश भारत सरकार प्रमोटेड पी एंड ओ भारतीय व्यापारियों से बहुत ज्‍यादा माल ढुलाई दर वसूलती थी. 

अपने कपड़ा व्यवसाय पर पड़ रहे बुरे असर को देखते हुए जमशेदजी जापान की सबसे बड़ी शिपिंग लाइन निप्पॉन युसेन कैशा (NYK) के साथ साझेदारी करने के लिए जापान गए.

NYK इस शर्त पर साझेदारी करने को तैयार हुई कि जमशेदजी भी बराबर का जोखिम उठाएंगे. वह जहाजों का प्रबंधन खुद संभालेंगे.

उन्होंने एक अंग्रेजी जहाज, 'एनी बैरो' को प्रति माह 1,050 पाउंड की तय दर पर किराये पर लिया, जो 'टाटा लाइन' का पहला जहाज बना.

जमशेदजी का मानना था कि यह उद्यम पूरे भारतीय कपड़ा उद्योग के लिए शिपिंग दरों को 19 रुपये प्रति टन से घटाकर 12 रुपये प्रति टन कर देता, जिससे पी एंड ओ. का एकाधिकार टूट जाता.

जल्द ही एक दूसरा जहाज 'लिंडिसफेर्न' को किराये पर लिया गया. अक्टूबर 1894 में द ट्रिब्यून ने जमशेदजी के प्रयासों की सराहना करते हुए भारत के औद्योगिक क्षेत्र में उनके महत्व को स्वीकार किया. 

पी एंड ओ. ने तुरंत जवाबी कार्रवाई करते हुए दरों को घटाकर 1.8 रुपये प्रति टन कर दिया, लेकिन यह छूट केवल उन व्यापारियों के लिए थी जो टाटा लाइन या NYK के जहाजों का उपयोग नहीं करने के लिए सहमत हुए थे. 

जमशेदजी की ओर से ब्रिटिश भारत सरकार से शिकायत किए जाने के बावजूद ये अनुचित काम जारी रहे. धीरे-धीरे पी एंड ओ. के प्रभाव के डर से भारतीय व्यापारियों ने टाटा लाइन से अपना समर्थन वापस ले लिया.

जमशेदजी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर टाटा लाइन बंद हो जाती है तो भविष्य में दरें बढ़ जाएंगी. लेकिन, उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.

'भाड़े की जंग' के अंत तक उन्होंने टाटा लाइन पर 1 लाख रुपये से ज्‍यादा खर्च कर दिए थे. इसमें हर महीने हजारों रुपये का नुकसान हो रहा था.

सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद जमशेदजी इस नतीजे पर पहुंचे कि टाटा लाइन के लिए आगे कोई स्थायी रास्ता नहीं है. 

उन्होंने यह व्यवसाय बंद करने का फैसला किया, भले ही इससे एक सफल उद्यमी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को खतरा था. उन्होंने किराये के जहाजों को वापस इंग्लैंड भेज दिया. इससे टाटा लाइन का अंत हो गया.