वो महाराजा जिसे कहा जाता था 'गरीबों का डॉक्टर', जिंदगीभर किया मुफ्त इलाज
भारत राजा और महाराजाओं की इमेज आमतौर पर शानदार जीवन जीने वाले लोगों की है. जिनके पास बेपनाह दौलत होती थी. जो अपनी रियासतों के मालिक थे. परले दर्जे के अय्याश और सनकी होते थे. वो कारों के दीवाने थे.
इन्हीं राजाओं के बीच एक राजा ऐसा भी था, जो इनसे एकदम अलग था. वो 04 साल में अपनी रियासत का शासक बना. विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई की. बाद में अपनी गरीब प्रजा की मुफ्त चिकित्सा की.
वह गुजरात की गोंडल रियासत के महाराजा भगवत सिंह थे. वह एक प्रशिक्षित डॉक्टर थे. वह एमडी थे और एमएस भी यानि मास्टर इन मेडिसिन और मास्टर इन सर्जरी भी.
गुजरात में अपने छोटे से राज्य में जरूरतमंदों के लिए उन्होंने जो काम किया वह वाकई काबिले तारीफ है.
उन्हें गरीबों का डॉक्टर कहा जाता था क्योंकि उन्होंने गरीबों का इलाज करने के लिए ही मेडिकल की पढ़ाई की थी और जिंदगीभर मुफ्त में गरीबों का इलाज किया.
18वीं और 19वीं शताब्दी में गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र 217 छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, जिनमें से गोंडल भी एक था.
भगवतसिंह का जन्म 24 अक्टूबर 1865 ई. को गुजरात के मौजूदा राजकोट जिले के धोराजी में हुआ था. वे ठाकोर संग्रामसिंह द्वितीय के तीसरे बेटे थे, जो गोंडल के ठाकोर यानि राजा थे.
यह जडेजा वंश द्वारा स्थापित एक छोटी सी रियासत थी, जिसने जामनगर और कच्छ जैसे अन्य राज्यों पर भी शासन किया.
गोंडल सौराष्ट्र के मध्य में स्थित था. 1000 वर्ग मील में फैला हुआ था. उन दिनों यह एक बहुत पिछड़ा क्षेत्र था, जहा विभिन्न राज्यों के बीच छोटी-मोटी लड़ाइयां होती रहती थीं. बुनियादी ढांचा बहुत खराब था.
भगवत सिंह इसी माहौल में पले-बढ़े थे. नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था. 1869 ई. में, उनके पिता ठाकोर संग्रामसिंह की 45 वर्ष की आयु में अचानक मृत्यु हो गई.
एकमात्र जीवित पुत्र के रूप में, भगवत सिंह 04 वर्ष की आयु में गोंडल के शासक बन गए. चूंकि भगवत सिंह नाबालिग थे, इसलिए प्रशासन का काम कैप्टन लॉयड नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने किया.
1875 ई. में दस वर्ष की आयु में, भगवतसिंह को अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए राजकोट ले जाया गया, जहां उन्होंने राजकुमार कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की.