दिल्ली के 128 कमरों वाली वो हवेली जहां जवाहरलाल नेहरू करते थे डिनर, जानें नाम

पुरानी दिल्‍ली की सड़कों में शाम के वक्‍त सूरज की चमक भले ही फीकी पड़ रही थी, लेकिन यहां बनी चुन्‍नामल की हवेली की चमक आज भी वैसे की वैसी है, जैसे 1864 में निर्माण के समय थी. 

यह वही हवेली है, जहां पर किसी समय पर राजा-महाराजा उधारी लेने के लिए ‘लाइन’ लगाते थे. 

दिलचस्‍प बात जब बहादुरशाह जफर का समय खराब आया, वो भी यहां पर उधारी लेने पहुंचे लेकिन उन्‍हें चुन्‍नामल ने मना कर दिया. आइए जानें इस ऐतिहासिक हवेली के बारे में विस्‍तार से.

लाल किला से चांदनी चौक होकर फतेहपुरी की ओर जाने पर दाएं ओर एक हवेली दिखाई देगी. 

इसकी सिर्फ लंबाई देखकर कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि सबसे बड़ी हवेली यही होगी. एक ओर से दूसरे ओर तक पहुंचाने में आपको समय लगेगा. 

हालांकि यह केवल दो मंजिल ग्राउंड और फर्स्‍ट फ्लोर ही है. लेकिन अपनी भव्‍य और विशाल होने की कहानी दूर से बयां करती है. हवेली को देखते ही लोग समझ जाते हैं कि किसी रईस की हवेली होगी.

मौजूदा समय वन, टू, थ्री, फोर अधिकतम फाइव बीएचके (कमरे) के फ्लैट होते हैं. लेकिन इस हवेली में नीचे 130 दुकानें और ऊपरी मंजिल में 128 कमरें हैं. पूरी हवेली 2800 गज में है. 

मौजूदा समय केवल 20 कमरे ही खुले हैं. क्‍योंकि चुन्‍नामल की छठवीं पीढ़ी के अनिल कुमार यहां अपने परिवार के साथ रहते हैं. 

अन्‍य लोग यहां से बाहर निकल गए हैं, कुछ विदेश में, कुछ देश के अलग अलग शहरों में और कुछ दिल्‍ली में ही दूसरे इलाकों में रहते हैं. लेकिन सभी कमरों में परिवारों के लोगों ने ताला बंद कर रखा है.

इतनी बड़ी हवेली में कमरे भले ही 128 बने हों लेकिन किचन एक ही था. वो नीचे बना था. जो हवेली के साथ ही बनाया गया था. 

अनिल कुमार बताते हैं कि सामूहिक किचन आजादी के बाद तक चलता रहा, लेकिन धीरे धीरे करके परिवार वाले अलग होते गए और किचन अपने अपने कमरों के पास बनाते चले गए.

इस हवेली में जवाहर लाल नेहरू आ चुके हैं. कमरे में एक फोटो में डिनर करते हुए नेहरू जी के साथ इंदिरा गांधी दिख रही हैं, उस समय उनकी उम्र काफी कम दिख रही है.