इस जगह पर है एकमात्र 6000 साल पुराना एकलव्य मंदिर, जानें यहां की खासियत
महाभारत काल में अर्जुन, कर्ण, भीम जैसे कई महान योद्धा हुए, लेकिन एक ऐसा भी योद्धा जिसने गुरू के प्रति एक शिष्य के कर्तव्य की सीख दी.
एकलव्य का नाम महाभारत के इतिहास में इस तरह छपा हुआ है कि समय की मार भी उसे धूमिल नहीं कर सकती.
पांडव और कौरवों के गुरू द्रोणाचार्य को अपना गुरु मानकर धनुष विद्या में सबसे सर्वश्रेष्ठ कहलाने वाले एकलव्य की विद्या से हर कोई डर गया था.
द्रोणाचार्य पहले ही अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का वचन दे चुके थे, इसलिए उन्हें एकलव्य का कौशल देख अपना वचन टूटने का आभास हो गया.
क्योंकि एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु माना था इसलिए द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा के तौर पर एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया.
एकलव्य ने भी कर्तव्य का पालन करते हुए खुशी-खुशी अपना अंगूठा काटकर द्रोणाचार्य को दे दिया और इस तरह अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन पाए.
एकलव्य की कहानी सुनकर उनके लिए सम्मान और भक्ति मन में बढ़ जाती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में उनका सिर्फ एक ही मंदिर है.
दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक मंदिर है जो निषादराज एकलव्य के नाम से प्रसिद्ध है. ये मंदिर 6000 साल पुराना बताया जाता है.
पिछले 14 महीने से इस मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य जारी है. कहा जाता है कि जिस जगह मंदिर है उसे पहले खांडवप्रस्थ के नाम से जाना जाता था.
इस जगह को खांडसा गांव के तौर पर जाना जाता है. कथित तौर पर इसी जगह एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास किया था.