मलेरिया की दवाई से विकसित हुई है ये कॉकटेल, भारत से भी है रिश्ता

पेरू के घने जंगलों में, एंडीज पहाड़ियों और अमेजन नदी के बीच, मौजूद है मानू नेशनल पार्क.

यहां आपको 'सिनकोना ऑफिसिनैलिस' नाम का एक पेड़ मिलेगा, जिसका गहरा संबंध 'जिन एंड टॉनिक' ड्रिंक और भारत से है.

ये उस दौर की बात है जब अंग्रेजी हुकूमत दुनिया के तमाम देशों में अपने पांव पसार रही थी. अंग्रेजी अफसर, जो भारत समेत अन्य देशों में तैनात थे, मलेरिया से जूझ रहे थे.

उस दौर में मलेरिया के लिए कोई आधुनिक इलाज उपलब्ध नहीं था, और भारत में हर दिन हजारों लोग इस बीमारी से मरते थे.

युद्ध तो इन्होंने बंदूकों और बारूद से जीत लिए. लेकिन मच्छर गोलियों से कहां मरने वाले थे.

सिनकोना पेड़ की छाल से मिलने वाला क्वीनाइन मलेरिया का इलाज था, और इसे दक्षिण अमेरिका से भारत और जावा लाया गया.

1850 से 1865 के बीच सिनकोना के पौधे भारत लाए गए. अंग्रेजों ने भारत में क्वीनाइन को आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की.

हालांकि, क्वीनाइन की कड़वाहट के कारण इसे सोडा के साथ मिलाकर पिया जाता था. बाद में 1858 में, 1858 में इसे 'टॉनिक वाटर' के नाम से पेटेंट कराया गया.

टॉनिक वॉटर को शुरू में मलेरिया से बचाव और बुखार के इलाज के रूप में इस्तेमाल किया गया, लेकिन धीरे-धीरे इसे जिन (Gin) के साथ मिलाकर पिया जाने लगा.

इसका पहला जिक्र 1868 में 'ओरिएंटल स्पोर्टिंग मैग्जीन' में मिलता है, जहां इसे घोड़ों की रेस के बाद पार्टी के दौरान पिया गया.

इस तरह, जिन और टॉनिक का संयोजन एक लोकप्रिय कॉकटेल बन गया, जिसकी जड़ें मलेरिया के इलाज और भारत के साथ जुड़ी हैं.