ये है धरती की वो जगह, जहां अभी तक नहीं हुई है कलयुग की एंट्री, जानें नाम
कहा जाता है कि नैमिषारण्य वो स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने वैरी देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं.
साथ ही ये भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य का नाम नैमिष नामक वन की वजह से रखा गया है.
इसके पीछे कहानी ये है कि महाभारत युद्ध के बाद साधु-संत कलियुग के प्रारंभ को लेकर काफी चिंतित थे.
इसलिए उन्होंने ब्रह्मा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने के लिए कहा जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे.
इसके बाद बह्माजी ने एक पवित्र चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए बोले कि जहां भी ये चक्र रुकेगा, वो स्थान कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा.
फिर ब्रह्मा जी का चक्र नैमिष वन में आकर रुका. इसीलिए साधु-संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया.
कहा ये भी जाता है कि ब्रह्मा जी ने खुद भी इस स्थान को ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था. जिसके बाद प्राचीन काल में करीब 88 हजार ऋषि -मुनियों ने इस स्थान पर तप किया था.
इसके अलावा रामायण में भी ये उल्लेख है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश भी उनका मिलन इसी स्थान पर हुआ था.
इसके अलावा महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी इसी जगह आए थे.