इस गांव को कहा जाता है ‘लिटिल ग्रीस’, अपने सख्‍त कानून को लेकर है मशहूर

भारत में हर क्षेत्र की अपनी अलग-अलग परंपराएं हैं. ऐसा ही एक अलग परंपराओं वाला गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्‍लू जिले में है.

कुल्‍लू जिले के मलाणा गांव का अपना अलग ही कानून है. इस गांव में पर्यटकों के कुछ भी छूने पर प्रतिबंध लागू है. 

यहां लगाए गए नोटिसों में लिखा गया है कि अगर बाहरी लोगों ने यहां की किसी भी चीज को छुआ तो उन्‍हें 1,000 रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा. ये जुर्माना 2,500 रुपये तक लगाया जा सकता है.

मलाणा गांव में ये पाबंदी इतनी सख्‍ती से लागू है कि बाहर से घूमने आए लोग यहां की दुकानों में रखे सामान तक को नहीं छू सकते हैं.

यहां आने वाले पर्यटक खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए भी पैसे दुकान के बाहर रख देते है. इसके बाद दुकानदार पर्यटक की बताई चीज दुकान के सामने जमीन पर रख देता है.

मलाणा गांव की सिर्फ यही एक खासियत नहीं है. यहां का संविधान सबसे पुराना माना जाता है. इनके अपने कानून हैं, जो इतने सख्‍त हैं कि अपराधी खौफ खाते हैं. इसलिए यहां के लोग भारतीय संविधान को नहीं मानते हैं.

इसे दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक गांव कहा जाता है. पहाड़ियों से घिरा मलाणा गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्‍लू जिले में है. इस गांव की अपनी संसद भी है.

कुल्‍लू जिले के मलाणा गांव की संसद के बड़े सदन में अगर किसी सदस्‍य का निधन हो जाता है तो पूरे सदन का दोबारा गठन होता है. 

भारत और यूनान के विद्वानों का एक समूह मलाणा गांव पर शोध कर रहा है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, मलाणा गांव का महान यौद्धा सिकंदर से सीधा संबंध है. 

सिकंदर ने 326 ईसापूर्व जब भारत पर आक्रमण किया तो उसे पोरस से संधि करनी पड़ी. सिकंदर तो यूनान लौट गया, लेकिन उसकी सेना के कुछ सैनिक हिमाचल प्रदेश के मलाणा गांव में बस गए. 

लिहाजा, यहां के लोग खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं. इसे सिकंदर के सैनिकों का गांव भी कहा जाता है. 

हालांकि, इस बात के ऐतिहासिक सबूत नहीं मिलते हैं कि ये सिकंदर के सैनिकों का गांव है. यहां की बोलचाल में कुछ ग्रीक शब्‍दों का इस्‍तेमाल भी काफी होता है.