'रात' में क्यों होता हैं किन्नरों का अंतिम संस्कार, बाहरी लोग नहीं हो सकते हैं शामिल? ऐसा क्यों

हिंदू धर्म के मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि किन्नरों की दुआओं में काफी शक्ति होती है.

परिवार में शादी-ब्याह या बच्चे के जन्म जैसी खुशियों के मौके पर अक्सर किन्नर आती हैं और दुआएं देकर जाती हैं.

इसके अलावा आपने शहरों में ट्रैफिक सिग्नल पर भी किन्नरों को दुआएं देकर बख्शीस मांगते हुए देखा होगा.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन्नरों का अंतिम संस्कार कैसे होता है और इसमें बाहरी लोग क्यों शामिल नहीं हो सकते हैं.

इसके अलावा मरने के बाद किन्नर समाज जशन भी मनाता है और मृत शरीर को जूते चप्पलों से पीटा भी जाता है आइए जानते हैं इसके बारे में-

किन्नरों के मुताबिक, उनको अपनी मृत्यु का आभास हो जाता है. जिसके बाद से वह खाना बंद कर देते हैं और कहीं बाहर नहीं जाते हैं.

इस दौरान वह ईश्वर में विलीन हो जाते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस जन्म में किन्नर तो हुए लेकिन अगले जन्म में हमें किन्नर न बनाए. किन्नर मृत शरीर को जलाने के बजाय वह दफनाते हैं.

मृत शरीर को वो कफ़न से लपेटते हैं लेकिन किसी चीज से वह बांधते नहीं है उनका मानना होता है कि ऐसे में आत्मा को आजाद होने में कष्ट होता है इसलिए सिर्फ कफ़न लपटते हैं.

किन्नर समाज का मानना है कि रात में इसलिए हम सब अंतिम क्रिया करते हैं ताकि कोई इंसान उसे देख ना पाए.

क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर कोई इंसान किन्नर के शव को देख ले तो वह अगले जन्म में किन्नर ही बनेगा. इसी कारण से पूरी अंतिम क्रिया को रात में किया जाता है.

किन्नर मृत के बाद शव को जूते चप्पल से पीटते हैं. उनका मानना होता है कि अगले जन्म में इस योनि में जन्म ना मिले.

इसके अलावा अपने आराध्य देवता का बहुत ध्यान करते हैं और साथ ही साथ दान पुण्य भी करते हैं.