भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जिन पर दोनों देश दावा ठोकते रहते हैं.

ऐसे ही इलाकों में से एक था जम्मू-कश्मीर के बाल्टिस्तान इलाके का तुरतुक गांव. बंटवारे के वक्त ये पाकिस्तान में था. 

चूंकि ये गांव दोनों मुल्कों की सरहदों के बीच स्थित था, लिहाजा यहां बाहरी लोगों के आने पर पाबंदी थी. यहां के लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे हुए थे.

1971 में हुए इस युद्ध में मुंह की खाने के बाद तुरतुक गांव भी पाकिस्‍तान के हाथ से निकल गया. अब ये गांव भारत में शामिल है.

यह इलाका काराकोरम पहाड़ों से घिरा हुआ है. यहां दूर-दूर तक पहाड़ ही पहाड़ नजर आते हैं.

तुरतुक गांव बौद्धों के गढ़ लद्दाख में है, लेकिन यहां की ज्यादातर आबादी मुसलमानों की है. इन लोगों पर तिब्बत और बौद्धों का गहरा प्रभाव है.

माना जाता है कि ये सभी इंडो-आर्यनों के वंशज हैं. मूल रूप से ये लोग बाल्टी भाषा बोलते हैं, लेकिन इनका खानपान और संस्कृति साझा है. 

देश के एक छोर पर बसे तुरतुक गांव के लोगों की जिंदगी बहुत सादी है. लोग छोटा-मोटा कारोबार करके अपना गुजारा करते हैं. 

बिजली भी यहां नाम मात्र ही आती है. मगर, कुदरत ने इस गांव को अपनी नेमतों से मालामाल किया है. जंगल, पहाड़, नदियां और खूबसूरत नजारे यहां खूब हैं.