क्या सच में इंसानों के पूर्वज बंदर थे? या फिर ऐसे ही कही जाती है ये बात, जानें
हम जब भी इंसानों के विकास के क्रम को समझने की कोशिश करते हैं, तो एक थ्योरी सामने आती है कि बंदर इंसानों के पूर्वज थे.
कहा जाता है कि इंसान पहले बंदर हुआ करते थे और समय के साथ उन्होंने अपनी जरूरत के अनुसार खुद को ढाला और इंसानों में बदलाव होते चले गए.
हालांकि, विज्ञान की किताबें देखने पर पता चलता है कि ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि बंदर ही इंसानों के पूर्वज थे,
तो अब सवाल ये है कि ये बात कहां से आई और इंसानों की बंदरों से समानता क्यों की गई? आइए जानते हैं.
इंसानों का विकास कैसे हुआ? इसके पीछे चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत है. इसमें कहा गया है कि इंसानों ने अपनी जरूरत के अनुसार, खुद में बदलाव किया और यह वंशानुगत क्रम चलता रहा.
इस क्रम में कई जानवर पनपे. इनमें स्तनपायी और प्राइमेट्स प्रमुख हैं. हालांकि, सवाल अभी भी वहीं है कि बंदरों को इंसानों का पूर्वज क्यों कहा गया.
जब आप किसी से पूछेंगे तो यही जवाब मिलेगा कि चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत में ये बात कही गई कि इंसानों का विकास बंदरों से ही हुआ.
हालांकि, डार्विन ने ऐसा कहीं नहीं लिखा है. दरअसल, डार्विन ने विकासवाद को समझाते हुए ये दिखाने की कोशिश की थी कि इंसान पहले बंदरों जैसा दिखा था.
समय के साथ इंसानों ने खुद को जरूरतों के अनुसार ढालना शुरू किया और आधुनिक मानव अस्तित्व में आए.
अगर डार्विन ने नहीं कहा तो ये बात आई कहां से? दरअसल, इंसानों और बंदरों का विकास तो एक साथ ही हुआ, लेकिन ये अलग-अलग जगहों और अलग तरह से हुआ.
इसलिए इंसानों और बंदरों में कई भिन्नताएं हैं तो उसमें कई समानताएं भी हैं.
इससे ये बात समझ में आती है कि बंदरों और इंसानों के पूर्वज एक रहे होंगे, लेकिन इससे ये बात नहीं साबित होती है कि बंदर ही इंसानों के पूर्वज थे.