क्या है दिल्ली समझौते का पाकिस्तान से कनेक्शन? जानें
क्या आपको पता है कि भारत और पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सालों पहले दोनों देशों के मुखिया एक समझौता कर चुके हैं,
जिसे लियाकत-नेहरू समझौता या दिल्ली समझौता के नाम से जाना जाता है.
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के दोनों देशों के भीतर भी दंगे हो रहे थे और अल्पसंख्यकों को खासतौर पर निशाना बनाया जा रहा था.
उस दौर में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच युद्ध से बचने के लिए एक समझौता प्रस्तावित किया गया था.
इसको लेकर दोनों के बीच दो सौ से अधिक चिट्ठियों और टेलीग्राम का आदान-प्रदान हुआ था. साथ ही दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी समझौता प्रस्तावित था.
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए लियाकत अली खान और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 8 अप्रैल 1950 को दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर किया.
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए इस समझौते में कहा गया था कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को धर्म की परवाह किए बिना नागरिकता के समान अधिकार मिलेंगे.
सभी अल्पसंख्यकों की जान-माल, संपत्ति-संस्कृति और व्यक्तिगत गरिमा की सुरक्षा की जाएगी. इन्हें पूरे देश में आने-जाने की आजादी दूसरे लोगों की तरह ही होगी.
इसमें रोजगार की स्वतंत्रता, बोलने- लिखने की स्वाधीनता और पूजा की स्वतंत्रता की गारंटी देने की बात भी कही गई थी.
इसी समझौते के तहत यह भी तय किया गया था कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को सरकारी मामलों में हिस्सा लेने के लिए समान अवसर दिए जाएंगे.
यानी वे भी राजनीतिक पद के योग्य होंगे. साथ ही नागरिक और सशस्त्र बलों में नियुक्ति पाने के अधिकारी होंगे.
इस मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के ये प्रावधान तो पहले से ही शामिल हैं.
वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहा था कि पाकिस्तान की संविधान सभा के संकल्प में भी इसी तरह के प्रस्ताव स्वीकार किए गए हैं.