जब दुनिया युद्ध में थी व्यस्त, तब भारत ने बना डाला 'मैसूर सैंडल सोप', जानें पूरी कहानी

साबुन की इस समय ढेर सारी कंपनियां हैं पर एक समय था जब गिने-चुने साबुन ही उपलब्ध हुआ करते थे. उन्हीं में से एक नाम मैसूर सैंडल सोप है जो साल 1916 में अस्तित्व में आया. 

107 साल से ज्यादा हो गए और इस दौरान हजारों कंपनियां आ गई. लेकिन आज भी मैसूर सैंडल सोप लाखों लोगों की पसंद बनी हुई है. बहुत से लोग ये नहीं जानते हैं होंगे कि ये सोप आज कर्नाटक सरकार का ब्रांड है. 

कर्नाटक सोप्स एंड डिटर्जेंट लिमिटेड इसकी मार्केटिंग करती है. आज भले ही इस पर सरकारी स्वामित्व है लेकिन मैसूर सैंडल सोप की नींव के पीछे मैसूर रियासत का शाही घराना था. इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. 

वो प्रथम विश्व युद्ध का दौर था. भारत में ब्रिटिश राज था. मैसूर में वोडियार साम्राज्य था और राजा थे वोडियार चतुर्थ. राजा के एक दीवाने थे मोक्षगुंडम विश्वेश्वैरया. 

वही विश्वेश्वैरया, जिन्हें देश के विख्यात इंजीनियर, प्रशासक और स्टेट्समैन के तौर पर जाना जाता है. उनके नाम देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी है. वो 1912 से 1918 तक मैसूर रियासत के दीवान रहे.

20वीं सदी की शुरुआत में मैसूर पूरी दुनिया में चंदन की लकड़ी के लिए बहुत फेमस था और यहां से चंदन की उस वक्त मैसूर से चंदन के बड़े ब्लॉक्स पूरे यूरोप में बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट किए जाते थे. वहां उनसे तेल निकाला जाता था.

प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो यह क्रम टूट गया. सप्लाई बंद हुई तो मैसूर में चंदन की लकड़ी के ढेर लगने लगे. तब महाराज ने यहीं तेल निकालने का फैसला लिया. विदेश से मशीनें मंगवाई गई. 1916 में बेंगलुरु में तेल निकालने का काम शुरू हुआ, जिसे लिक्विड गोल्ड कहा जाने लगा.

मैसूर में चंदन तेल का इस्तेमाल सबसे पहले महाराज के नहाने के लिए किया जा रहा था. कुछ समय बाद मैसूर के महाराज से मिलने फ्रांस से दो लोग आए. वो अपने साथ चंदन के तेल से बने साबुन लेकर आए थे. महाराज को भी यह आइडिया भा गया. 

एम विश्वेश्वरैया ने बंबई से एक्सपर्ट्स को बुलवाकर इसकी व्यवस्था करने को कहा. महाराज ने जाने-माने इंडस्ट्रियल केमिस्ट एसजी शास्त्री को लंदन भेजा ताकि वह साबुन और सेंट टेक्नोलॉजी को लेकर स्टडी कर सकें. 

लंदन से वापस आने पर शास्त्री ने सैंडलवुड परफ्यूम डेवलप किया. यही मैसूर सैंडल सोप का बेस बना. पहली बार 1918 में बेंगलुरु के कबन पार्क के पास स्थित फैक्ट्री में साबुन तैयार किया गया.

इस साबुन को भी पहले महाराज के इस्तेमाल के लिए रखा जाने लगा. फिर महाराज ने ही इसे अपनी प्रजा के लिए भी प्रस्तुत करना चाहा. फिर बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होने लगा और इस तरह मैसूर सैंडल सोप आम लोगों के लिए उपलब्ध हो गया.

वर्ष 2003 से 2006 के बीच मैसूर सैंडल सोप ने खूब कमाई की. केएसडील ने साल 2006 में पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को मैसूर सैंडल सोप का पहला ब्रांड एंबेसडर भी बनाया.