नेहरू और राजेंद्र प्रसाद ने जहां ली थी शपथ, अब बना गणतंत्र मंडप, जानें क्यों है खास
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में दो कक्षों के नाम बदल दिए हैं. ऐतिहासिक तौर पर हमेशा उल्लेख किए जाने वाले दरबार हॉल को अब गणतंत्र मंडप कहा जाएगा तो अशोक हॉल को अशोक मंडप.
इन दोनों हॉल की अपनी कहानी रही है. इन दोनों मंडपों की उम्र 92 साल हो चुकी है. सर एडविन लुटियंस ने इस भव्य राष्ट्रपति भवन को 1911 में बनाना शुरू किया और 1932 में खत्म किया.
आजादी से पहले दरबार हॉल को थोर्न हॉल कहा जाता था. फिर इसे नया नाम मिला दरबार हॉल के रूप में. दरबार यानि वो कक्ष जहां प्रमुख अपने सहयोगियों और दरबारियों के साथ बैठकर सभा या मीटिंग कर सके.
दरबार हॉल की भी अपनी एक कहानी है. ये हमारे सुनहरे क्षणों का भी गवाह रहा है. यहीं भारत रत्नों को अवार्ड मिलता रहा है, यहीं कई तरह की अवार्ड समारोह होते आए हैं.
जब 1932 में ये भवन बनकर तैयार हुआ तो इसे वायसराय हाउस कहा जाता था. तब इस हॉल को थोर्न हॉल का नाम दिया गया. लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो इस कक्ष को दरबार हॉल नाम दिया गया.
दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन के सबसे भव्य कमरों में एक है, ये विशाल केंद्रीय गुंबद के ठीक नीचे बना मुख्य हॉल है.
1947 में देश की आजाद की रात जवाहरलाल नेहरू ने यहीं देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. फिर 1950 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने यहीं राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
यही वो स्थान भी है, जहां फरवरी 1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का पार्थिव शरीर रखा गया. यहीं पर सरकार दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी करती है.
ये हॉल पीले जैसलमेर संगमरमर के स्तंभों से घिरा हुआ है, जिसके शीर्ष और आधार सफ़ेद हैं. अटारी में 12 संगमरमर की जालियों से हॉल में सूरज का प्रकाश आता है.
हाल ही में, 2014 और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिपरिषद ने शपथ ग्रहण समारोह दरबार हॉल के बजाय राष्ट्रपति भवन के खचाखच भरे प्रांगण में आयोजित किए गए थे.
अब इस हॉल को गणतंत्र मंडप के नाम से जाना जाएगा. हालांकि पहले इसे सिंहासन कक्ष के नाम से ही जाना जाता था, जब सी. राजगोपालाचारी ने 1948 में इसमें भारत के गर्वनर जनरल की शपथ ली.
इस कक्ष में दीवार के सामने लाल मखमली पृष्ठभूमि पर भगवान बुद्ध की 5वीं शताब्दी की मूर्ति रखी गई है. इस मूर्ति के सामने राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है. पहले इस स्थान पर दो सिंहासन रखे जाते थे, एक वायसराय और दूसरा वायसरीन के लिए.
इस हॉल के गलियारे में देशभर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों द्वारा गढ़ी गई पूर्व भारतीय राष्ट्रपतियों की प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं. इसमें कई शानदार पेंटिंग्स भी लगी हैं.