कौन हैं दमयंती हिंगोरानी, जिसने जिद से जीत ली दुनिया, हर भारतीय को है इनपर गर्व

साल 1967 की बात है जब महिलाएं बहुत कम ही नौकरियां करते दिखाई देती थी. महिलाओं के लिए बहुत कम विकल्प भी थे. 

कई कंपनियों में महिलाओं को नौकरी नहीं दी जाती थी. इन्ही में अमेरिका की भी एक ऐसी कंपनी थी जहां महिलाओं के लिए ऑप्शन नहीं थे. 

जहां किसी अमेरिकी या अंग्रेज महिला को नौकरी नहीं मिल रही थी वहां पहली बार एक भारतीय महिला इंजीनियर ने कुछ ऐसा किया कि कंपनी को अपने नियम बदलने पड़े. 

336000 करोड़ की कंपनी इस महिला की जिद के सामने झुक गई. कंपनी को अपना सालों पुराना नियम बदलना पड़ा और पहली बार किसी महिला इंजीनियर को नौकरी देनी पड़ी. 

भारत की दमयंती हिंगोरानी गुप्ता वो महिला हैं जिन्होंने न केवल खुद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की बल्कि बाकी महिलाओं के लिए भी रास्ते खोल दिए. 

इस महिला के सामने 336000 करोड़ की अमेरिकी कंपनी को झुकना पड़ा कंपनी ने अपना नियम तक बदल दिया. 

दमयंती हिंगोरानी गुप्ता पर हर भारतीय को गर्व है. क्योंकि उन्होंने कंपनी को नियम बदलने के लिए मजबूर कर दिया था और उन्हें नौकरी देनी पड़ी थी. 

साल 1942 में पाकिस्तान में जन्मी दमयंती विभाजन के बाद भारत आ गई. दमयंती 13 साल की थी तभी तय कर लिया कि वो इंजीनियरिंग करेंगी. 

ये फैसला आसान नहीं था क्योंकि उस समय लड़कियां इंजीनियरिंग तो दूर पढ़ाई तक नहीं किया करती थी. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बात से प्रभावित होकर उन्होंने इंजीनियरिंग का रास्ता चुना. दमयंती इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली पहली महिला थी. 

मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना परना पड़ा था. कॉलेज में हजारों लड़कों के बीच में वो अकेली थी. 

लड़कियों के लिए वहां वॉशरूम तक नहीं होते थे. उन्हें बाथरूम के लिए भी डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. तमाम परेशानियों के बावजूद उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर डिग्री हासिल की.