दुनिया का सबसे बड़े महाकुंभ मेला प्रयागराज में मकर संक्रांति, यानी 13 जनवरी से शुरू हो रहा है. ऐसे बड़े आयोजनों में आपको अक्सर नागा साधुओं को देखना मिलते हैं. 

आपने नागा साधुओं के बारे में जरूर सुना और पढ़ा होगा, लेकिन शायद ही कुछ लोग महिला नागा साधुओं के बारे में जानते होंगे. 

दरअसल, जैसे पुरुष नागा साधु होते हैं, उसी प्रकार महिलाएं भी नागा साधु बन सकती हैं. पुरुषों की तरह महिलाएं भी इस धर्म-संप्रदाय को अपनाती हैं. 

महाकुंभ में महिला नागा साधु भी गाजे बाजे के साथ आती हैं. इस दौरान वह अपने अखाड़ों में करती क्या हैं. उन्हें कई संबोधनों से पुकारा जाता है, जिसमें एक शब्द नागिन भी है.

आखिर महिला कैसे नागा साधु बन जाती है. महिला नागा साधुओं का जीवन कैसा होता है. आज हम आपको महिला नागा साधुओं से जुड़े खौफनाक सच के बारे में बताएंगे. 

दरअसल पुरुष नागा साधुओं को नागा कहते हैं. वो शरीर पर बिल्कुल कपड़े धारण नहीं करते. केवल भस्म लपेटकर रखते हैं.

महिला नागा साधुओं को स्त्रीलिंग में नागिन कहते हैं. इसका अर्थ नकारात्मक तौर पर कतई नहीं होता और ना इसका मतलब सर्प प्रजाति की नागिन के तौर पर होता है.

महिला नागा साधु बाहरी दुनियां में बहुत ही कम दिखाई देती हैं. महिला नागा साधु जंगलों और अखाड़ों में रहती हैं. ये कई सालों तक कठिन तप करती हैं.

किसी महिला के मन में अगर नागा साधु बनने की इच्छा होती है, तो उसके लिए पहले 6 से 12 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक माना जाता है.

इतना ही नहीं जो भी महिला नागा साधु बनती है उसका पहला सिर मुंडवा दिया जाता है. नागा साधु बनने का सबसे अहम पड़ाव है पिंडदान करना. 

महिला नागा साधु बनने के लिए जीते जी महिला का पिंडदान करा दिया जाता है. पिंडदान के बाद महिला को उस जीवन से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाती है.