कैलाश पर्वत पर क्यों नहीं चढ़ पाता कोई? यहां जानिए क्या है इसके पीछे का रहस्य
कैलाश पर्वत की ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है, जो एवरेस्ट से कम है, लेकिन इसकी चढ़ाई करना बहुत कठिन है.
यहां की भौगोलिक संरचना, जलवायु और अत्यधिक ऊंचाई की वजह से, यह पर्वतारोहियों के लिए एक बड़ा चुनौती बन जाता है.
कैलाश पर्वत की चढ़ाई में अक्सर बर्फबारी और तेज हवाएं होती हैं, जो इसे और भी खतरनाक बनाती हैं. इसके अलावा, इस क्षेत्र की प्राकृतिक विशेषताएं और पत्थरों की संरचना भी चढ़ाई को कठिन बनाती हैं.
वहीं कैलाश पर्वत का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है. यह हिन्दू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. इसके अलावा, बौद्ध धर्म में इसे 'कांता' के रूप में पूजा जाता है.
जैन धर्म के अनुयायी भी इसे एक पवित्र स्थल मानते हैं. इसके चारों ओर की यात्रा, जिसे 'कैलाश परिक्रमा' कहा जाता है, न केवल भक्ति का एक हिस्सा है बल्कि यह आत्मा की शुद्धि का एक माध्यम भी है.
धार्मिक मान्यताओं के कारण, इसे एक 'अविनाशी' पर्वत माना जाता है और यही कारण है कि कोई भी इस पर चढ़ाई करने की हिम्मत नहीं करता.
कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने का एक और महत्वपूर्ण पहलू मानसिक तैयारी है. पर्वतारोहण केवल शारीरिक शक्ति का परीक्षण नहीं है, बल्कि यह मानसिक दृढ़ता का भी खास हिस्सा है.
कैलाश पर्वत पर चढ़ने के लिए व्यक्ति को न केवल शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए, बल्कि उसे मानसिक रूप से भी तैयार रहना चाहिए.
धार्मिक मान्यताओं के कारण, यहां की यात्रा में आध्यात्मिक पहलू भी जुड़ा होता है, जो व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रभावित कर सकता है.
कई लोगों ने कैलाश की चढ़ाई करने की कोशिश की है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हो सका. कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड और धरती के बीच का केंद्र माना गया है.
एवरेस्ट के वातावरण की तुलना में कैलाश पर्वत का वातावरण ज्यादा कठिन माना गया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक. कैलाश पर्वत पर मैग्नेटिक फील्ड ज्यादा सक्रिय है.
यही कारण है कि इसका वातावरण अन्य किसी स्थान के वातावरण से अलग प्रतीत होता है और यही इसकी चढ़ाई को और भी मुश्किल बना देता है.