महाभारत में कर्ण ने अंत तक क्यों नहीं छोड़ा था दुर्योधन का साथ? यहां जानें रहस्य

महाभारत के सबसे जटिल और करुण पात्रों में से एक कर्ण ने अंत तक दुर्योधन का साथ क्यों नहीं छोड़ा? इसके पीछे कई गहरे, भावनात्मक और मानवीय कारण छिपे हैं.

कर्ण का जन्म क्षत्रिय कुल में हुआ था, लेकिन मां कुंती द्वारा त्याग दिए जाने के कारण उसे जीवनभर 'सूतपुत्र' कहकर अपमानित किया गया। यही कारण था कि उसे कभी वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह वास्तव में हकदार था.

जब कर्ण ने अपनी अद्वितीय धनुर्विद्या का प्रदर्शन करते हुए अर्जुन को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा, तो वहां उपस्थित राजपुत्रों और गुरु द्रोण ने उसके कुल को लेकर उसका उपहास उड़ाया, न कि उसकी प्रतिभा को सम्मान दिया.

दुर्योधन ही एकमात्र व्यक्ति था जिसने कर्ण की योग्यता को पहचाना और उसे अंग देश का राजा बनाकर समाज में वह सम्मान दिलाया जिसकी उसे जीवन भर चाह थी .

कर्ण ने दुर्योधन के उपकार को अपना सबसे बड़ा ऋण माना और प्रतिज्ञा की कि जब तक उसमें प्राण हैं, वह उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगा.

कर्ण अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन करने वाला योद्धा था। उसने दुर्योधन को साथ निभाने का जो वचन दिया था, उसे वह धर्म की तरह निभाता रहा, क्योंकि उसके लिए वचन से पीछे हटना अधर्म था.